विविधता ही भारत की पहचान है। हमारे देश की संस्कृति में इतनी विविधताएं हैं जिसका अंदाजा हमें भी नहीं है। Yuva Press आपको एक ऐसे समुदाय के बारे में बताने जा रहा है जो मूल रूप से अफ्रीकन है। इनकी नागरिकता भारत की है और बोल गुजराती है। गुजरात के ‘गिर’ जंगल के बीच एक छोटा सा कस्बा है जिसे ‘जंबूर’ के नाम से जाना जाता है। यहां ‘सिद्दी’ जनजाति के लोग रहते हैं जो हमारे देश की विविधता वाली पहचान को आगे बढ़ा रहे हैं।
गुजरात टूरिज्म पर बनी फिल्म “खुशबू गुजरात की” में दिखाया गया है
‘जंबूर’ क्षेत्र को भारत का मिनी अफ्रीका भी कहा जाता है। भारत के नागरिक होते हुए भी इन्होंने अपनी पहचान बचाकर रखी है। आज भी इनकी संस्कृति और नृत्य पर अफ्रीकी रीति-रिवाज की छाप स्पष्ट तौर पर देखी जा सकती है। गिर आने वाले सभी टूरिस्ट इनके पारंपरिक नृत्य का लुत्फ जरूर उठाते हैं। अपनी परंपराओं को न बदलना ही इनकी पहचान है। रात के समय में जब ये अपने चेहरे को रेड, ब्लू और ग्रीन कलर से पेंट कर लेते हैं, चमकीले टाइगर स्किन वाले कपड़े पहन कर अफ्रीकन फोक सॉन्ग पर डांस करते हैं तो आपको एहसास होगा कि आप अफ्रीका में हैं। गुजरात टूरिज्म पर बनी फिल्म “खुशबू गुजरात की” में भी इन्हें दिखाया गया है।
इनके इतिहास को लेकर अलग-अलग राय
‘सिद्दी’ आदिवासी मूल रूप से अफ्रीका के बनतु समुदाय के हैं। भारत में ये कैसे आए इसको लेकर अलग-अलग इतिहासकारों की अपनी-अपनी राय है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि करीब 750 साल पहले इन्हें पुर्तगाली गुलाम बनाकर भारत लाया गया था। वही कुछ इतिहासकारों का कहना है कि करीब 300 साल पहले जूनागढ़ के तात्कालिक नवाब अफ्रीका घूमने के लिए गए थे। नवाब को एक अफ्रीकन लड़की से प्यार हो गया और वे उसे लेकर जूनागढ़ आ गए। आते वक्त साथ में करीब 100 गुलाम भी आए। यहां आकर नवाब ने सभी गुलामों को बसा दिया। भारत में इनकी शुरुआत वहीं से होती है।
जूनागढ़ घूमने आएं तो इनका नृत्य जरूर देखें
इतिहासकारों के मुताबिक ‘सिद्दी’ जनजाति गुजरात के अलावा भारत के कई अन्य हिस्सों में भी पाई जाती है। भारत के अलावा पाकिस्तान में भी ये बड़ी संख्या में मौजूद हैं। गुजराती ‘सिद्दी’ जनजाति की बात करें तो कुछ लोगों ने इस्लाम को कबूल कर लिया है तो कुछ लोग इसाई और हिंदू धर्म को भी मानते हैं। गुजरात के जूनागढ़ में ये सबसे ज्यादा संख्या में हैं। इसके अलावा ये कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में भी कुछ संख्या में पाए जाते हैं। भारत में इनकी कुल संख्या करीब 50 हजार के आसपास होगी।
बनावट, रंग और बोली से बिल्कुल अफ्रीकी
जिस रफ्तार से दूसरी जाति और जनजाति के लोगों की संख्या बढ़ रही है उस रफ्तार से इनकी जनसंख्या नहीं बढ़ रही है। दरअसल ये अपनी परंपरा और शादी को लेकर बहुत ही ज्यादा सख्त होते हैं। ज्यादातर लोगों की शादी अपने ही समुदाय में होती ही। अपनी परंपरा और रीति-रिवाज के साथ छेड़छाड़ इन्हें बिल्कुल भी पसंद नहीं है। यही वजह है कि आज भी इनकी बनावट, बोली और रहन-सहन बिल्कुल मूल अफ्रीकियों की तरह है।