हमारी धरती पर पानी की समस्या इतनी तेजी से बढ़ रही है कि इसके कारण इंसान के अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा हो गया है। लेकिन दुख की बात है कि अभी भी कुछ गिने-चुने लोगों को छोड़कर किसी का भी पानी की समस्या पर ध्यान नहीं है, या ध्यान हो भी तो कोई कुछ कर नहीं रहा। लेकिन कुछ लोग हैं जो दुनिया के सामने आने वाली इस बड़ी समस्या पर ना सिर्फ सोच रहे हैं बल्कि काम भी कर रहे हैं। ऐसे ही लोगों में “अनुपम मिश्रा” का नाम भी शुमार होता है। दुख की बात है कि अनुपम मिश्रा आज हमारें बीच नहीं है, लेकिन उनका काम आज भी हमें निरंतर प्रेरित कर रहा है। अनुपम मिश्रा का कहना था कि हम अपनी विरासत यानि कि तालाबों, नदियों, कुएं, बावड़ियों को संजोकर और उनका विस्तार कर पानी की समस्या से निजात पा सकते हैं। लेकिन मौजूदा समय में इंसान लालच और अपनी जरुरतों के कारण अपनी ही विरासत को निगल रहा है। यही वजह है कि आज हम पानी की समस्या से घिर गए हैं।
विरासत से जोड़ने का प्रयास
अनुपम मिश्रा एक गांधीवादी, लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद् और जल संरक्षक के तौर पर जाने जाते हैं। खासकर पानी बचाने के लिए किए गए उनके प्रयासों के लिए अनुपम मिश्रा विशेष रुप से याद किए जाते हैं। अनुपम मिश्रा ने भारत में जल संरक्षण के लिए एक शानदार किताब “आज भी खरे हैं तालाब” लिखी है, जिसकी 2 लाख से ज्यादा कॉपियां बिक चुकी हैं और 10 से ज्यादा भाषाओं में इस किताब का अनुवाद हो चुका है। अपनी इस किताब में अनुपम मिश्रा ने पानी की समस्या से निजात पाने के तरीकों का जिक्र किया है।
गौरतलब बात है कि दुनिया भर की आबादी में से 16 प्रतिशत आबादी भारत में बसती है, जिसके पास दुनिया का सिर्फ 4 प्रतिशत ही ताजा जल है। पिछले 20 सालों में हमारे देश में पानी की समस्या काफी बढ़ी है। हालात ये हैं कि हमारे देश की आधी आबादी पानी की कमी से परेशान है। अनुपम मिश्रा का मानना था कि तालाबों, कुओं को खत्म कर, हम अपने प्राकृतिक जल संरक्षण के तरीकों को ही खत्म कर रहे हैं। इसका नुकसान यह हो रहा है कि पानी के विकल्प तो सिमट ही रहे हैं साथ ही हम पानी की निकासी के रास्ते भी बंद कर रहे हैं। महानगरों में जिस तरह थोड़ी सी बारिश में ही सड़कें पानी से भरी नजर आती हैं, यह तालाबों और कुओं को खत्म करने का ही नतीजा है।
अनुपम मिश्रा देश में सिंचाई के गलत तरीकों के कारण होने वाली पानी की बर्बादी से भी काफी चिंतिंत थे। उनका कहना था कि हम सिंचाई में तकनीक का इस्तेमाल करके, लोगों को जागरुक बनाकर, नदियों और तालाबों को बचाकर ही अपनी आने वाली नस्लों को बचा सकेंगे। अनुपम मिश्रा की कोशिशों का ही नतीजा है कि आज देश के विभिन्न इलाकों में 5000 से ज्यादा तालाबों को दोबारा से नया जीवन दिया गया है।
अनुपम मिश्रा को समाज में किए गए उनके सराहनीय काम के लिए “जमनालाल बजाज अवॉर्ड” और “अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद नेशनल अवॉर्ड” से भी नवाजा गया। जल संरक्षण के साथ-साथ अनुपम मिश्रा ने गांधीवादी विचारधारा को फैलाने में भी अहम योगदान दिया। मिश्रा महीने में 2 बार प्रकाशित होने वाले अखबार “गांधी मार्ग” के संपादक भी रहे और अपने पूरे जीवन में समाज की बेहतरी और पर्यावरण के लिए काम करते रहे। 19 दिसंबर, 2016 को 68 साल की उम्र में अनुपम मिश्रा इस दुनिया से विदा हो गए, लेकिन लोगों को यह सीख देकर गए हैं कि अगर हम अपनी विरासत को साथ लेकर आगे बढ़े, तो ही, अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुंदर धरती छोड़कर जाएंगे !