भारत को अंग्रेजी राज से आजादी 1947 में मिली, लेकिन इस आजादी के साथ कश्मीर समस्या भी विरासत में मिली। आज देश को आजाद हुए 70 साल पूरे हो चुके हैं लेकिन कश्मीर मुद्दा आज तक अनसुलझा है और निकट भविष्य में इसके सुलझने के आसार भी कम ही नजर आ रहे हैं। कई लोगों का मानना है कि कश्मीर समस्या को बढ़ाने में Article 370 का सबसे बड़ा हाथ है। यहां तक कि केन्द्र की भाजपा सरकार ने सत्ता में आते वक्त वादा किया था कि उनकी सरकार बनने पर Article 370 हटाने पर विचार किया जाएगा। हालांकि यह इतना आसान नहीं है और अभी तक इस दिशा में कोई पहल नहीं हो सकी है। तो क्या है ये Article 370, जिसे लेकर इतना विवाद हो रहा है ?
Article 370 क्या है ?
आर्टिकल 370, जम्मू कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों से अलग करता है, आसान शब्दों में कहें तो आर्टिकल 370 जम्मू कश्मीर को स्वायत्ता (Autonomy) प्रदान करता है। हालांकि International Relation(अन्तर्राष्ट्रीय संबंध), Defence(रक्षा), Communication(संवाद) की शक्तियां अभी भी संसद के पास हैं, लेकिन इनके अलावा सारी शक्तियां जम्मू कश्मीर की विधानसभा को मिली हुई हैं। मतलब देश की संसद में बनने वाला कानून तब तक जम्मू कश्मीर पर लागू नहीं होगा, जब तक वहां की विधानसभा उसे पास नहीं कर देती। इसके उदाहरण की बात करें तो देश भर में लागू होने वाला RTI कानून जम्मू कश्मीर पर लागू नहीं होता है। हाल ही में लागू हुआ GST कानून भी जम्मू कश्मीर पर लागू नही होगा क्योंकि वहां की विधानसभा ने इसे पास नहीं किया है।
क्या है इसका इतिहास
जब देश आजाद हु्आ तो सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सभी रियासतों को ताकत और कूटनीति के दम पर भारत में मिला लिया। लेकिन जम्मू कश्मीर की रियासत ने भारत में शामिल होने से इंकार कर दिया। इसी दौरान पाकिस्तान सेना ने कबाइलियों की मदद से जम्मू कश्मीर पर हमला बोल दिया। जिसके बाद जम्मू कश्मीर के राजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी और कुछ शर्तों के साथ जम्मू कश्मीर को भारत में मिलाने पर सहमति दे दी। इस शर्तों के तहत देश के संविधान में जम्मू कश्मीर को कुछ विशेष अधिकार दिए गए। ये विशेष अधिकार ही Article 370 के रुप में जाने जाते हैं।
कहा जाता है कि संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर आर्टिकल 370 के पक्ष में नहीं थे, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु और जम्मू कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला के समझाने पर अंबेडकर मान गए थे। अच्छी बात ये है कि ये सभी अधिकार टेम्परेरी हैं और अगर जम्मू कश्मीर की विधानसभा आर्टिकल 370 को हटाने के लिए तैयार हो जाती है तो देश की संसद इस कानून को रद्द कर सकती है। लेकिन अभी तक के हालात को देखते हुए इसके आसार कम ही हैं !
आर्टिकल 370 के कुछ फैक्ट्स
आर्टिकल 370 के तहत जम्मू कश्मीर और उसके लोगों को कई फायदे मिले हैं, जोकि निम्न हैं-
सबसे पहले तो जम्मू कश्मीर अपना अलग झंडा रख सकता है।
जम्मू कश्मीर में बाहर के राज्य का कोई भी व्यक्ति जमीन नहीं खरीद सकता। मतलब है जो लोग जम्मू कश्मीर के परमानेंट निवासी हैं, वो ही यहां जमीन खरीद सकते हैं।
जम्मू कश्मीर के लोगों के पास दोहरी नागरिकता है। दरअसल यहां के लोग पहले कश्मीर के निवासी हैं उसके बाद वह भारतीय हैं।
पूरे देश में जहां विधानसभा का कार्यकाल 5 साल के लिए होता है, वहीं जम्मू कश्मीर में सरकार 6 साल के लिए निर्वाचित होती है।
सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के आदेश जम्मू कश्मीर पर लागू नहीं होते हैं।
आर्टिकल 370 के तहत यदि कोई कश्मीरी महिला किसी दूसरे राज्य के व्यक्ति से शादी कर लेती है तो उसकी जम्मू कश्मीर की नागरिकता समाप्त मानी जाती है। इसके साथ ही एक जो सबसे विवादित कानून है वो ये कि कश्मीरी महिला यदि किसी पाकिस्तानी से शादी करती है तो उसकी जम्मू कश्मीर की नागरिकता बरकरार रहेगी।
RTI, GST जैसे कानून जम्मू कश्मीर पर लागू नहीं होते हैं। साथ ही CBI, CAG जैसी संस्थाएं भी जम्मू कश्मीर में प्रभावी नहीं हैं।
जम्मू कश्मीर में चूंकि बहुसंख्यक आबादी मुस्लिम है और आर्टिकल 370 के तहत यहां शरीयत कानून लागू है।
वहीं अल्पसंख्यकों जैसे हिंदू-सिखों को काफी कम अधिकार दिए गए हैं। पंचायतों को भी जम्मू कश्मीर में कोई अधिकार नहीं दिए गए हैं।
ऐसा नहीं है कि आर्टिकल 370 से जम्मू कश्मीर को सारे फायदे ही हैं। दरअसल इसके कुछ नुकसान भी हैं जो कि आज कश्मीर में दिखाई भी देते हैं। सबसे बड़ा नुकसान तो ये है कि आर्टिकल 370 के कारण जम्मू कश्मीर में इंडस्ट्री डेवलप नहीं हो सकी है। क्योंकि बाहरी लोग यहां जमीन नहीं खरीद सकते, इस कारण यहां पर्यटन इंडस्ट्री भी पूरी तरह से डेवलेप नहीं हो सकी है। यही वजह है कि घाटी में बेरोजगारी की समस्या काफी ज्यादा है। जो कहीं ना कहीं आतंकवाद के लिए खाद-पानी का काम करती है।