देश जैसे जैसे तरक्की कर रहा है, लोग जागरुक हो रहे हैं। यही कारण है कि अब हमारे देश में सामाजिक मुद्दों से जुड़े विषयों पर फिल्में बन रही हैं। हाल ही में ऐसी कई फिल्में बनी हैं, जिन्हें खूब पसंद भी किया गया है। अब एक बार फिर ऐसे ही विषय पर बनी एक फिल्म रिलीज के लिए तैयार है जिसकी आजकल काफी चर्चा भी हो रही है। जी हां, अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म ‘पैडमैन’ एक ऐसे विषय पर बनी है, जिसकी हमारे समाज में खुलेआम चर्चा भी नहीं की जाती। बता दें कि पैडमैन महिलाओं की पीरियड्स की समस्या और सैनेटरी नैपकिन के इस्तेमाल पर आधारित है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह फिल्म एक इंसान की सच्ची कहानी है। जी हां, ये फिल्म Arunachalam Muruganantham के जीवन पर आधारित है, तो आइए जानते हैं, इस सच्चे हीरो के बारे में-
कौन हैं Arunachalam Muruganantham
अरुनाचलम मुरुगनाथम का जन्म कोयंबटूर (तमिलनाडु) में एक साधारण परिवार में हुआ। उनके पिता एक बुनकर थे और उनकी मां खेतों पर काम करके परिवार का भरण-पोषण करते थे। अरुनाचलम खुद 9वीं कक्षा तक पढ़े और फिर एक दुकान पर हेल्पर का काम करने लगे।
कैसे आया आइडिया
बात 1998 की है, जब एक दिन अरुनाचलम मुरुगनाथम अपने घर पर थे। तभी उन्होंने अपनी पत्नी को एक गंदा कपड़ा चोरी-छिपे ले जाते हुए देखा। जब उन्होंने अपनी पत्नी से इस बारे में पूछा तो पहले तो पत्नी ने ना-नुकल की, लेकिन ज्यादा पूछने पर बता दिया कि वह पीरियड के दिनों में इस कपड़े का इस्तेमाल करती हैं। यह जानकर अरुनाचलम को काफी आश्चर्य हुआ कि उनकी पत्नी पीरियड्स के दिनों में इतना Unhygenic कपड़ा इस्तेमाल कर रही हैं। जब उन्होंने अपनी पत्नी को सैनेटरी नैपकिन इस्तेमाल करने को कहा तो अरुनाचलम की बीवी ने सैनेटरी नैपकिन काफी महंगा होने की बात कही। बस, इसी बात से अरुनाचलम को सस्ती सैनटरी नैपकिन बनाने का आइडिया आया और यहां से उनकी दुनिया ही बदल गई।
संघर्ष भरा रहा सफर
अरुनाचलम के लिए सैनेटरी नैपकिन बनाने की कहानी काफी संघर्षों भरी रही। दरअसल सैनेटरी नैपकिन देखकर अरुनाचलम ने कॉटन का इस्तेमाल कर एक सस्ती सैनेटरी नैपकिन बनायी। लेकिन वह कारगर साबित नहीं हुई। इसके बाद सैनेटरी नैपकिन को बेहतर बनाने के लिए अरुनाचलम को सबसे पहले यह पता करना था कि पीरियड्स के दौरान महिलाओं को क्या-क्या परेशानी होती है। इसके लिए अरुनाचलम को काफी विरोध झेलना पड़ा। हालात यहां तक पहुंच गए कि अरुनाचलम की पत्नी और मां उन्हें छोड़कर चली गई। सभी नाते-रिश्तेदार, आस-पड़ोस वाले लोग भी अरुनाचलम से नाराज हो गए। लेकिन अरुनाचलम ने हार नहीं मानी और महिलाओं को सस्ती और बेहतर सैनेटरी नैपकिन मुहैया कराने के मिशन में जुटे रहे।
ऐसे मिली पहचान
बता दें कि जब अपने काम में महिलाओं का साथ नहीं मिला तो अरुनाचलम ने खुद ही नकली बल्ड लगाकर सैनेटरी नैपकिन पहनना शुरु कर दिया था। इस तरह कई साल की मेहनत, संघर्ष के बाद आखिरकार अरुनाचलम सस्ती नैपकिन बनाने में सफल हो गए। उनकी इस खोज को IIT मद्रास ने “समाज में बदलाव लाने वाले अविष्कारों” में पहले नंबर पर रखा। IIT मद्रास से पहचान मिलने के बाद अरुनाचलम रातों रात मीडिया में छा गए और उनके किए गए काम को सभी लोगों ने सराहा। इसके बाद अरुनाचलम ने अपने इस आइडिया को पेटेंट कराया और आज उनकी कपंनी कई महिलाओं को रोजगार देकर सस्ते सैनेटरी नैपकिन बना रही है। अरुनाचलम की कोशिश है कि अपने इस काम की बदौलत वह आने वाले सालों में करीब 10 लाख महिलाओं को नौकरी दें।
इतना ही नहीं अरुनाचलम को समाज की बेहतरी की दिशा में किए गए उनके सराहनीय काम के लिए पदमश्री सम्मान से नवाजा जा चुका है। अरुनाचलम भले ही 9वीं कक्षा तक पढ़ें हो, लेकिन आज वह हावर्ड, स्टेनफोर्ड जैसे विश्वविद्यालयों में गेस्ट लेक्चरर के तौर पर जाते हैं। बहरहाल अरुनाचलम की कहानी इस बात का उदाहरण है जब आप समाज में बदलाव लाने की कोशिश करते हैं तो पूरा समाज विरोध में खड़ा हो जाता, लेकिन जैसे ही आप सफल होते हैं तो वो ही समाज आपको रातों-रात हीरो बना देता है।