रिपोर्ट : विनीत दुबे
अहमदाबाद, 24 सितंबर, 2019 (युवाPRESS)। दुनिया की एक सबसे पुरानी ट्रैवल कंपनी के बंद हो जाने से दुनिया भर के लगभग 6 लाख सैलानी यहाँ-वहाँ होटलों में फँस गये हैं। इतना ही नहीं, इस कंपनी के बंद हो जाने से एक झटके में लगभग 22,000 लोगों की नौकरी चली गई। कंपनी के बंद होने से भारत को भी लगभग 50 करोड़ रुपये का झटका लगेगा। आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला ?
बंद हुई दुनिया की सबसे पुरानी ट्रैवल कंपनी थॉमस कुक
दरअसल, दुनिया की सबसे पुरानी ब्रिटिश टूर एण्ड ट्रैवल कंपनी थॉमस कुक का टूर सोमवार को हमेशा के लिये खत्म हो गया। 178 साल पुरानी इस कंपनी का शटर रातों रात बंद हो जाने से दुनिया भर के होटलों में बुकिंग कराने वाले लगभग 6 लाख टूरिस्ट यहाँ-वहाँ फँस गये हैं। इतना ही नहीं, 16 देशों में फैली इस कंपनी के लगभग 22 हजार कर्मचारी भी एक झटके में बेरोजगार हो गये हैं। इस बड़े संकट के बारे में कहा जा रहा है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद पहली बार इतनी बड़ी संख्या में टूरिस्ट होटलों में फँसे हैं।
1841 में स्थापित हुई थी थॉमस कुक

दुनिया की सबसे पुरानी ट्रैवल कंपनी थॉमस कुक 19वीं सदी में 1841 में शुरू हुई थी। ब्रिटिश नागरिक थॉमस कुक ने हारबोरफ मार्केट में इस कंपनी की बहुत ही छोटे स्तर पर शुरुआत की थी। उस समय ब्रिटेन में रेलवे लाइनें बिछने की शुरुआत ही हुई थी। इसी दौरान यह कंपनी कामगार तथा कुलीन, दोनों वर्गों के लिये छुट्टियाँ बिताने का इंतजाम करने वाली कंपनी के रूप में अस्तित्व में आई थी। 1855 तक कंपनी इंटरनेशनल बन गई। औद्योगिक क्रांति के बाद कंपनी ब्रिटेन के मिडिल क्लास लोगों की घूमने-फिरने की बढ़ती आकांक्षाओं की हमसफर बनी। इसी दौरान कंपनी ने पहली बार यूरोप के लिये टूर की शुरुआत की थी। उसने लंदन से पैरिस के लिये ट्रिप का आयोजन किया। पहली बार किसी कंपनी ने कंपनी हॉलिडे पैकेज की घोषणा की थी, जिसमें सहलगाह के साथ-साथ सैलानियों के रहने-खाने का भी इंतजाम किया गया था। इसके बाद कंपनी 1866 तक पर्यटकों को यूरोप से अमेरिका भी ले जाने लगी थी।
1892 में अगली पीढ़ी के हाथ आई कंपनी
1892 में कंपनी के संस्थापक थॉमस कुक का निधन हो जाने के बाद कंपनी अगली पीढ़ी के हाथ में आई और कुक के बेटे जॉन मैसन कुक ने कंपनी की कमान सँभाली थी। इसके बाद 20वीं सदी में 1928 में थॉमस के पोते फ्रैंक तथा अर्नेस्ट ने कंपनी के कारोबार को अन्य मालिकों के हाथों में बेच दिया था। दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1948 में ब्रिटेन में रेलवे का राष्ट्रीयकरण हुआ। इसी दौरान थॉमस कुक भी बिकने के कगार पर थी, तो सरकार ने उसका भी अधिग्रहण कर लिया था। इस प्रकार इस कंपनी का भी राष्ट्रीयकरण हो गया था।
1972 में कंपनी का फिर निजीकरण हो गया
20वीं सदी के उत्तरार्ध में 1972 में थॉमस कुक ट्रैवल कंपनी का फिर से निजीकरण हो गया और वह एक बार फिर निजी हाथों में पहुँच गई। कंपनी को मिडलैंड बैंक, होटलियर ट्रस्ट हाउस फोर्ट और ऑटोमोबाइल एसोसिएशन ने खरीदा था। उस समय मध्य-पूर्व में तेल संकट, ब्रिटेन में मजदूरों की हड़ताल के कारण जहाँ एक ओर अन्य ट्रैवल कंपनियों का भट्ठा बैठ गया था, वहीं थॉमस कुक न सिर्फ मजबूती से डँटी रही, बल्कि उसने अपने व्यवसाय का विश्वस्तरीय विस्तार भी किया था। 1992 में एक जर्मन कंसोर्टियम ने थॉमस कुक ग्रुप का अधिग्रहण किया था। इसके बाद 21वीं सदी के प्रारंभ में 2001 में जर्मन कंपनी C&N टूरिस्टिक एजी ने इसका अधिग्रहण किया था। इससे कंपनी का नाम बदल गया था और इसका नाम थॉमस कुक एजी हो गया था।
2007 में माइ ट्रैवल में विलय से शुरू हुआ पतन
वर्ष 2007 में थॉमस कुक और यूके बेज्ड पैकेज ट्रैवल कंपनी माइ ट्रैवल का विलय हुआ। यही कदम थॉमस कुक के लिये आत्मघाती साबित हुआ और उसके पतन की शुरुआत हुई। इसके बाद कंपनी कर्ज में गोते लगाने लगी और फिर उबर नहीं पाई। इसके अलावा, उसे एक नई कंपनी जेट 2 हॉलिडे से कड़ी चुनौती भी मिल रही थी। पिछले महीने थॉमस कुक के संकट से उबरने की एक उम्मीद बनी थी, जब उसने चीन की एक इन्वेस्टमेंट कंपनी फोसन के साथ 1.1 अरब डॉलर की रेस्क्यू डील की थी। यद्यपि यह उपाय भी काम नहीं आया। कंपनी पर 1,770 करोड़ रुपये का कर्ज हो चुका था, जिसे वह चुका नहीं पा रही थी।
कंपनी को किसने डुबोया ?
थॉमस कुक कंपनी को इंटरनेट ने डुबो दिया। सोशल नेटवर्किंग और ई-कॉमर्स बेज्ड कंपनियों ने पूरी दुनिया में संगठित टूरिज्म और हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री की जड़ें खोद डालीं। दुनिया में किसी भी अनजान लोकेशन पर जाने के लिये सस्ती हवाई सेवा उपलब्ध कराने वाली ढेरों साइटें सक्रिय हो गई हैं। यही स्थिति होटल में या किसी के घर में कमरा लेने, खाना मँगाने और टैक्सी बुक करने को लेकर भी है। यही सारे कारण अंततः 178 साल पुरानी कंपनी की यात्रा खत्म करने की बड़ी वजह बने।
कंपनी के बंद होने का क्या होगा असर ?

थॉमस कुक ट्रैवल कंपनी के बंद होने का असर दुनिया के उन सभी 16 देशों पर पड़ेगा, जहाँ कंपनी काम करती थी। इसके अलावा कई देशों पर इसका कम-ज्यादा प्रमाण में असर देखने को मिलेगा।इस कंपनी के बंद होने से सबसे पहला असर तो उन सभी 22 हजार कर्मचारियों पर पड़ा, जिनकी जॉब एक झटके में चली गई। अकेले ब्रिटेन में 9,000 लोगों की नौकरियाँ गई हैं। कंपनी हर साल लगभग 2 करोड़ सैलानियों को ट्रैवल सेवा उपलब्ध कराती थी। कंपनी 16 देशों में हर साल 19 करोड़ लोगों को होटल, रिसॉर्ट तथा एयरलाइन सर्विस उपलब्ध कराती थी। कंपनी के एयरलाइंस बेड़े में लगभग 100 विमान हैं। इसके अलावा दुनिया भर में 6 लाख यात्री फँसे हुए हैं। इनमें अकेले ब्रिटेन के लगभग डेढ़ लाख पर्यटक हैं। इसके अलावा जर्मनी के 1.4 लाख पर्यटक, ग्रीस के लगभग 50,000 टूरिस्ट में भी फँसे हुए हैं। भारत की बात करें तो अकेले गोवा टूरिज्म को ही लगभग 50 करोड़ रुपये का झटका लग सकता है।
भारत के बाद अब ब्रिटेन करेगा सबसे बड़ा एयरलिफ्ट
भारत ने खाड़ी युद्ध के समय दुनिया का सबसे बड़ा एयरलिफ्ट किया था, जिसमें 1.7 लाख भारतीयों को 13 अगस्त से 20 अक्टूबर 1990 के बीच एयरलिफ्ट करके खाड़ी देशों से निकाला गया था। इस पर बॉलीवुड में अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म एयरलिफ्ट भी बन चुकी है। अब ब्रिटेन दूसरे क्रम का सबसे बड़ा एयरलिफ्ट करने जा रहा है। वह विभिन्न देशों में फँसे अपने लगभग डेढ़ लाख सैलानियों को एयरलिफ्ट करके स्वदेश लाएगा, जिसके लिये वह किसी भी सैलानी से कोई कीमत वसूल नहीं करेगा। ब्रिटेन के परिवहन सचिव ग्रांट शेप्स के अनुसार सरकार दर्जनों चार्टर्ड विमान किराये पर लेकर ब्रिटिश सैलानियों को घर पहुँचाएगी। आगामी दो सप्ताह में दुनिया भर में फँसे ब्रिटेन के लोगों को एयरलिफ्ट करके ब्रिटेन लाया जाएगा। यह दूसरे विश्व युद्ध के बाद यात्रियों की सबसे बड़ी वापसी होगी। दो साल पहले जब ब्रिटेन में मोनार्क एयरलाइंस बंद हुई थी, तब भी सरकार ने विमान किराये पर लेकर 1.10 लाख यात्रियों को घर पहुँचाने की व्यवस्था की थी।