गुजरात की आर्थिक राजधानी और सुज्ञ एवं जागृत लोगों की नगरी अहमदाबाद में गत 25 मार्च से 31 मार्च तक एक महान आध्यात्मिक आयोजन हुआ और जितना भव्य इसका शुभारंभ था, उतना ही भव्य समापन भी हुआ।

इंद्रवदन मोदी की ओर से 13 मार्च, 1951 को मात्र 500 रुपए में आरंभ किए गए कैडिला फार्मास्युटिकल लिमिटेड की ओर से मेडिसीन मैन ऑफ इंडिया दिवंगत इंद्रवदन मोदी के पुत्र राजू (राजीव) मोदी ने अपने पिता इंद्रवदन मोदी और माता शीला मोदी की पुण्य स्मृति में वर्ष 2012 में यह महान आयोजन पहली बार किया था और इस वर्ष यह 7वाँ आयोजन था।

इस महान कार्यक्रम का नाम है अष्टावक्र गीता चिंतन सत्र, जिसके वक्ता थे महान आध्यात्मिक संत स्वामी तद्रूपानंद। यह कार्यक्रम जिस जगह पिछले 7 वर्षों से आयोजित होता आ रहा है, वह स्थल है गुजरात युनिवर्सिटी क्षेत्र स्थित जीएमडीसी कन्वेंशन हॉल, जिसकी बैठक क्षमता 2,222 लोगों की है और राजा जनक और गुरु अष्टावक्र के संवाद पर आधारित इस अष्टावक्र गीता चिंतन शिविर में लगभग सभी दिन पूरा हॉल खचाखच भरा हुआ रहा। जीएमडीसी कन्वेंशन हॉल की बैठक क्षमता और 7 वर्ष के 7-7 दिनों की गणना करने पर जो निष्कर्ष निकलता है, वह यह है कि कैडिला समूह और उसके वर्तमान कर्णधार राजू मोदी ने इन सात वर्षों में 7-7 दिनों के 7 आयोजनों के जरिए 1,08,878 ज्ञानपिपासु लोगों की ज्ञान की पिपासा बुझाने का महान यज्ञ किया और ऐसे लोगों के लिए कैडिला वास्तव में लाड़ला बन गया।

अष्टावक्र गीता चिंतन सत्र 2019 के कल रविवार को आयोजित समापन समारोह में स्वामी तद्रूपानंद के प्रवचन के आरंभ से पहले आभार विधि का जो कार्यक्रम हुआ, उससे कई निष्कर्ष सामने आए। आभार विधि के दौरान 7 दिनों में पहली बार मंच पर आए राजू मोदी ने कुछ ऐसी बातें कीं, जो स्वामी अष्टावक्र सहित सभी उपस्थित लोगों के हृदय को छू गई। वास्तव में राजू मोदी ने अपने पिता दिवंगत इंद्रवदन मोदी के जीवन में अध्यात्म और स्वामी तद्रूपानंद के प्रभाव की परम्परा को आगे बढ़ाने का जो कार्य किया, उस पर उपस्थित लोगों ने खूब तालियाँ बजाईं। राजू मोदी ने जो कहा, उससे सहज ही यह अनुमान लगाया जा सकता है कि ज्ञान की यह गंगा अगले वर्ष 2020 में भी कैडिला फार्मास्युटिकल परिवार जारी रखेगा।
सात दिवसीय इस अष्टावक्र गीता चिंतन शिविर में स्वामी तद्रूपानंद ने भारत के सनातन धर्म, अध्यात्म, ज्ञान पम्परा पर अद्भुत प्रवचन दिए, जिन्हें उपस्थित श्रोताओं में से किसी ने भी अपने जीवन में आचरण लाने का प्रयास किया, तो वह वास्तव में एक न एक दिन अवश्य ही स्वयं से साक्षात्कार कर सकेगा।