एक मशहूर कहावत है कि “मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है….”। भारतीय पैरालंपियन खिलाड़ी देवेंद्र झाझरिया ने इस कहावत को पूरी तरह से सच कर दिया है। बता दें कि देवेंद्र झाझरिया देश के पहले पैरा-ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट खिलाड़ी हैं। जिन्होंने साल 2004 एथेंस पैरा-ओलंपिक में भाला फेंक प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया था। इसके बाद पिछले साल रियो पैरालंपिक खेलों में भी देवेंद्र झाझरिया ने अपना ही रिकॉर्ड तोड़ते हुए एक बार फिर गोल्ड मेडल अपने नाम किया। खिलाड़ी के तौर पर हासिल की गई बेहतरीन उपलब्धियों के लिए देवेंद्र झाझरिया को राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड और पदमश्री जैसे सम्मानों से नवाजा जा चुका है। आइए जानते हैं देवेंद्र झाझरिया की प्रेरणादायी कहानी के बारे में-
दुर्घटना में खोया हाथ
देवेंद्र झाझरिया का जन्म राजस्थान के चुरु जिले के एक गांव में हुआ था। जब वह 8 या 9 साल के थे तो एक दिन पेड़ पर चढ़ते हुए उनका बायां हाथ 11000 वोल्ट की विद्युत लाइन से छू गया। जिसका नतीजा ये हुआ कि उनका बांया हाथ काटना पड़ा। इस घटना के बाद देवेंद्र अचानक लोगों की सहानुभूति के पात्र बन गए, जिसका उन्हें काफी बुरा लगता था। लेकिन ऐसे हालात में देवेंद्र का सहारा बने उनके माता-पिता, जिन्होंने उन्हें कभी भी कमजोर नहीं होने दिया।
माता-पिता के दिए हौंसले का ही असर था कि देवेंद्र ने कभी भी अपने आप को अपाहिज नहीं माना। लेकिन लोगों की बेचारगी वाली नजर देवेंद्र को काफी चुभती थी, यही वजह थी कि उन्होंने कुछ ऐसा करने की ठानी, जिसके बाद लोगों को उन पर गर्व हो। ऐसे में देवेंद्र ने स्पोर्ट्स फील्ड में जाने की सोची और स्कूल के लेवल पर भाला फेंक प्रतियोगिता में भाग लेना शुरु कर दिया।
देवेंद्र की मेहनत का ही नतीजा था कि जल्द ही वह आम बच्चों को भी चुनौती देने लगे और पहले स्कूल और फिर जिला स्तर पर देवेंद्र ने कई प्रतियोगिताएं जीती। साल 2002 में देवेंद्र के कोच RD सिंह ने देवेंद्र को पैरा-एशियन गेम्स में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया। यह इवेंट देवेंद्र के लिए लाइफ चेंजिंग साबित हुआ। बता दें कि देवेंद्र ने अपने पहले इवेंट पैरा-एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीतकर कमाल कर दिया। इसके बाद तो देवेंद्र को जैसे जीत का चस्का लग गया और इसके बाद उन्होंने साल 2013 वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड, साल 2014 में इंचियोन एशियन गेम्स में सिल्वर मेडल जीता।
दुख की बात यह रही कि एथेंस पैरा-ओलंपिक के बाद देवेंद्र झाझरिया की भाला फेंक कैटेगरी F46 ओलंपिक से हटा दी गई। उसके बाद वह कैटेगरी साल 2016 के रियो पैरा-ओलंपिक में शामिल की गई। लेकिन झाझरिया ने एक बार फिर अपनी श्रेष्ठता साबित करते हुए रियो पैरा-ओलंपिक में भी नए रिकॉर्ड के साथ गोल्ड मेडल हासिल किया। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि यदि साल 2008 के बीजिंग ओलंपिक और 2012 के लंदन ओलंपिक में भी F16 कैटेगरी होती तो शायद देवेंद्र झाझरिया के ओलंपिक मेडल की संख्या कई ज्यादा होती।
देवेंद्र झाझरिया की कहानी उन लोगों के लिए प्रेरणा है, जो हमेशा अपनी असफलता के लिए बहाने बनाते हैं। झाझरिया ने अपनी कमजोरी को ही अपनी ताकत बनाया और आज वह उस मुकाम पर हैं, जहां पहुंचना लोगों का सपना होता है।