आज इंसान जहां सिर्फ अपने बारे में सोचने में व्यस्त है, वहीं महाराष्ट्र में एक परिवार ऐसा भी है, जिसका पूरा जीवन जंगली जानवरों की सेवा में ही बीत रहा है। जी हां, हम बात कर रहे हैं महाराष्ट्र के गढचिरौली जिले के हेमलकासा गांव के रहने वाले डॉ. प्रकाश आम्टे के परिवार की। यह परिवार खतरनाक जंगली जानवरों को भी अपने परिवार का सदस्य मानता है। तो, आइए, जानते हैं डॉ. प्रकाश आम्टे और उनके परिवार की इस अनूठी कहानी के बारे में-
कैसे हुई शुरुआत
बता दें कि डॉ. प्रकाश आम्टे मशहूर समाजसेवी बाबा आम्टे के बेटे हैं। ऐसे में कह सकते हैं कि आम्टे परिवार में समाज सेवा खून में है। लेकिन डॉ. प्रकाश आम्टे का जानवरों के प्रति प्यार एक घटना के बाद जागा, जिसने उन्हें झकझोर कर रख दिया। दरअसल एक बार डॉ आम्टे और उनकी पत्नी कहीं जा रहे थे, तभी उन्होंने देखा कि कुछ आदिवासी कई बंदरों को पकड़ कर ले जा रहे हैं। आदिवासियों ने बंदरों को मारकर खाने के लिए पकड़ा था, लेकिन जब इसकी जानकारी डॉ. आम्टे को हुई तो उन्होंने बंदरों को छोड़ने के बदले आदिवासियों की आर्थिक मदद करने की पेशकश की। जिस पर आदिवासी मान गए। इसके बाद डॉ. आम्टे ने फैसला किया कि अब वह अपने गांव हेमलकासा में ही रहेंगे और जंगली जानवरों की सेवा करेंगे।
अब तो हालात यहां तक हो गए हैं कि डॉ. आम्टे के पास 100 से भी ज्यादा जंगली जानवर हैं। जिनमें हिरण, बंदर, के अलावा चीता, लकड़बग्घा, सांप, भालू जैसे खतरनाक जानवर भी शामिल हैं। हैरानी की बात है कि इन जंगली जानवरों की देखभाल सिर्फ डॉ. आम्टे ही नहीं बल्कि उनका पूरा परिवार करता है। डॉ. आम्टे चाहते हैं कि उनके जाने के बाद भी उनका परिवार जंगली जानवरों की देखभाल करता रहे।
बता दें कि डॉ. प्रकाश आम्टे पेशे से एक डॉक्टर हैं, लेकिन समाज सेवा के लिए उन्होंने प्रोफेशनल डॉक्टरी को अलविदा कह दिया। गढ़चिरौली जिला महाराष्ट्र के पिछड़े जिलों में आता है, जहां बड़ी संख्या में आदिवासी लोग रहते हैं। यही वजह है कि डॉ. आम्टे जंगली जानवरों को पालने के साथ ही आदिवासी लोगों की मदद भी करते हैं। डॉ. आम्टे को उनके इस सराहनीय काम के लिए पदमश्री समेत रमन मैग्सेसे अवॉर्ड भी मिल चुका है। फिलहाल डॉ. आम्टे के जीवन पर एक फिल्म का निर्माण भी किया जा रहा है।