रिपोर्ट : विनीत दुबे
अहमदाबाद, 7 जुलाई 2019 (YUVAPRESS)। दक्षिण गुजरात के नवसारी जिले की बारडोली तहसील के उमरा गाँव में अंबिका नदी पर बना एक बाँध का बॉलीवुड से खास नाता है। यह बाँध 1939-40 में गायकवाड़ के शासन काल में बना था। उस काल में इस बाँध की लागत 15 करोड़ रुपये आई थी। 1952 में इस डैम पर फिल्म मदर इंडिया की शूटिंग हुई थी, तब से इस डैम का नाम मदर इंडिया डैम पड़ गया है।
बाँध, बारडोली, बिलीमोरा, बॉलीवुड कनेक्शन

बारडोली तहसील के इस बाँध का कनेक्शन नवसारी जिले के ही बिलीमोरा से और बिलीमोरा के जरिये बॉलीवुड से तार जुड़े हैं। दरअसल बिलीमोरा का एक 16 साल का लड़का जिसका नाम महबूब रमजान खान था, वह एक किसान पुत्र था, जो अभिनेता बनने के लिये मुंबई भाग गया था। हालाँकि उसके पिता उसे पकड़कर वापस गाँव ले आए थे। इसके बाद वह 23 वर्ष की उम्र में फिर मुंबई भाग गया, उस समय उसकी जेब में 3 रुपये थे। मुंबई में अलग-अलग स्टूडियो के चक्कर लगाने के बाद भी जब उसे कहीं कोई काम नहीं मिला तो उसने अपना खुद का स्टूडियो शुरू कर दिया। महबूब खान प्रोडक्शन ने 1940 में फिल्म औरत का निर्माण किया था। इस फिल्म की कहानी एक ऐसी महिला की कहानी थी जो माता, पत्नी और महिला के कर्तव्यों के असाधारण भँवर में फँसी थी।
1939-40 में बने बाँध पर 1952 में हुई मदर इंडिया फिल्म की शूटिंग

महबूब खान का गुजरात से नाता था, इसलिये उन्होंने 1952 में जब एक अंग्रेज लेखक की विवादास्पद और भारत में प्रतिबंधित पुस्तक के अंग्रेजी शीर्षक पर अपनी अंग्रेजी शीर्षक वाली फिल्म ‘मदर इंडिया’ का निर्माण करने का फैसला किया तो ऐसा लग रहा था कि इस फिल्म पर विवाद होगा और इस पर भी पुस्तक की तरह ही प्रतिबंध लग जाएगा परंतु महबूब खान ने सरकार को पत्र लिखकर बताया कि उनकी फिल्म अंग्रेजी पुस्तक के शीर्षक से जरूर बन रही है, परंतु इसकी कथा उस पुस्तक से बिल्कुल भिन्न है। जब इस फिल्म की कहानी उस समय की लोकप्रिय अभिनेत्री नरगिस ने सुनी तो कहा जाता है कि उन्हें कहानी पढ़कर ही अनुमान लग गया था कि यह फिल्म उनके जीवन की ऐसी ऐतिहासिक फिल्म बनेगी, जो उन्हें बॉलीवुड फिल्मों में अमर कर देगी। हुआ भी वैसा ही।
फिल्म के लिये फसलें जलाने वाले किसानों ने नहीं लिया मुआवजा

महबूब खान के निर्देशन में बनी मदर इंडिया फिल्म की शूटिंग उमरा गाँव में अंबिका नदी पर बने इसी डेम पर हुई थी, इसलिये इस डेम का नाम ही मदर इंडिया डेम पड़ गया। अब तो लोगों को यह भी याद नहीं कि इस डेम का मूल नाम क्या है। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान एक दृश्य में खेतों की फसलें जलाई जाती हैं, यह दृश्य फिल्मी नहीं बल्कि सच्चा था और किसानों ने अपनी फसलें जलाने का हर्जाना भी महबूब से नहीं लिया था।
अब यह मधर इंडिया डेम आसपास के 22-23 गाँवों के लोगों की जीवनरेखा बन चुका है। यह डेम केवल इन गाँवों के पीने के पानी का ही स्रोत नहीं है, बल्कि यह डेम इस क्षेत्र की 300 एकड़ से भी अधिक कृषि भूमि के लिये सिंचाई का भी मुख्य स्रोत है। पिछले सात साल में पहली बार 2018 में यह डेम सूख जाने से इस क्षेत्र के लोगों की चिंता बढ़ गई थी, परंतु इस वर्ष दक्षिण गुजरात में भारी वर्षा के दौरान यह डेम छलक गया है, जिससे लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं है।