समाज में इंसान की पहचान कई कारणों से होती है जिसमे जाति, उपजाति, धर्म, संप्रदाय और क्षेत्र आदि शामिल हैं। व्यक्तिगत पहचान लिंग के आधार पर होती है। समाज के बने दस्तूर में लिंग की बस दो पहचान है- महिला और पुरुष। थर्ड जेंडर कुछ साल पहले तक हाशिए पर था। 2014 से पहले तक किन्नर (थर्ड जेंडर) के रूप में पैदा होना सबसे बड़ा कलंक माना जाता था। जन्मजात पहचान होने के बावजूद उसे ऐसी दुनिया में धकेल दिया जाता है जहां किसी की पहचान उसके नाम से नहीं होती है। लेकिन आज हम आपको उस शख्सियत से रूबरू करवा रहे हैं जिन्होंने उस दुनिया में पैदा होने के बावजूद अपनी पहचान बनाई और इतिहास में अपना नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज कर लिया।
थर्ड जेंडर को मुख्यधारा से जोड़ने की जरूरत
जोयिता मंडल को भारत का पहला ट्रांसजेंडर (थर्ड जेंडर) जज नियुक्त किया गया है। समाज के हर वर्ग के लोगों ने इसका स्वागत किया।‘थर्ड जेंडर’ कम्युनिटी के लिए यह गर्व की बात थी और वे काफी खुश हुए। लेकिन इस नियुक्ति पर जोयिता मंडल की राय बिल्कुल अलग है। उनका कहना है कि सरकार समाज के एक शख्स को उचा दर्जा देकर दावा करती है कि हमारा सहयोग उनके साथ है। वे तुष्टीकरण की बात करते हैं। लेकिन मुझे अपने किन्नर समाज को आगे बढ़ाना है। अगर मैं किसी पद पर काबिज हो सकती हूं तो हमारे समाज के तमाम लोग उस पद और सम्मान को हासिल करने में सक्षम हैं।
केवल ट्रांसजेंडर को थर्ड जेंडर का दर्जा
देश की पहली ट्रांसजेंडर (थर्ड जेंडर) जज, जोयिता मंडल के बारे में ज्यादा जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि भारत में LGBT का कानूनी दायरा क्या है ? थर्ड जेंडर में किसे शामिल किया गया है ? 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ-साफ कहा था कि ट्रांसजेंडर को थर्ड जेंडर माना जाएगा। उन्हें वे सभी अधिकार प्राप्त हैं जो महिला और पुरुष को हैं। हर दस्तावेज में सेक्स के तीन ऑप्शन होंगे मेल, फीमेल और थर्ड जेंडर। इसके अलावा उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य, नौकरी, आरक्षण समेत सभी अधिकार प्राप्त हैं जो OBC को प्राप्त है। अगर कोई थर्ड जेंडर अपना लिंग बदलवाकर मेल या फीमेल बनना चाहता है तो कोर्ट ने इसका भी अधिकार दिया है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने होमो सेक्सुअलिटी को अपराध की श्रेणी में रखा है। मतलब लेसबियन, गे और बाई-सेक्सुअल को अपराध की श्रेणी में रखा गया है।
थर्ड जेंडर के साथ बहुत भेदभाव होता है
29 वर्षीय ट्रांसजेंडर (थर्ड जेंडर) जज जोयिता मंडल का सफर मुश्किलों से भरा रहा। जोयिता को पश्चिम बंगाल के नॉर्थ दिनाजपुर के इस्लामपुर लोक अदालत का जज नियुक्त किया गया है। उन्होंने कहा कि हमने कानूनी लड़ाई तो जीत ली है लेकिन सामाजिक लड़ाई जारी है। आज भी हमारे साथ भेदभाव होता है। जब तक हमारा समाज आत्मनिर्भर नहीं होता है तब तक हमारे साथ भेदभाव होता रहेगा। रोजगार पाना ही हमारी सबसे बड़ी चुनौती है क्योंकि बहुत कम लोग शिक्षित हैं। जो शिक्षित और काबिल हैं उनके साथ नौकरी देने के वक्त भेदभाव होता है। अगर कोई नौकरी में आ भी जाता है तो साथ में काम करने वाले भेदभाव करते हैं।
थर्ड जेंडर को OBC कैटेगरी का आरक्षण
जानकारी के लिए बताना चाहूंगा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ट्रांसजेंडर (थर्ड जेंडर) को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा माना था। इसलिए थर्ड जेंडर को शिक्षा और नौकरी दोनों में आरक्षण दिया गया है। जोयिता का मकसद अपने समाज के लोगों को शिक्षा के प्रति जागरूक करना है ताकि शिक्षित और आत्मनिर्भर होकर वे भी इज्जत की जिंदगी बिता सकें।