अहमदाबाद 3 जुलाई, 2019 (YUVAPRESS)। जमीन की दृष्टि से चीन भारत से बड़ा देश है। उसके पास भले ही भारत से ज्यादा जमीन हो, परंतु भारत के पास उससे 4 गुना अधिक जलीय भूमि (पानी वाली भूमि) है। भारत के पास ताजे पानी के सबसे बड़े जलाशय भी हैं, इसके बावजूद भारत के कई हिस्सों में पानी की एक-एक बूँद के लिये लोगों को मीलों का सफर करना पड़ता है। चीन ने कम पानी में कैसे बेहतर गुजारा करना चाहिये, यह सीख लिया है तो सवाल यह उठता है कि पानी की बर्बादी करने वाला भारत क्या चीन से पानी के बेहतरीन इस्तेमाल का सबक सीखेगा ?
पानी के किफायती उपयोग के बारे में बहुत पहले सोचने लगा था चीन

भारत में अब पानी के उपयोग को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है, परंतु चीन ने पानी के इस्तेमाल को लेकर 20 साल पहले ही सोचना शुरू कर दिया था और उसने ऐसी-ऐसी बातों पर विचार करना शुरू कर दिया था, जिन बातों पर भारत में अभी भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है। उसने काफी समय पहले ही ब्रह्मपुत्र नदी के भारत और बांग्लादेश में बह जाने वाले पानी पर नज़र रखना शुरू कर दिया था। इस नदी का दो तिहाई हिस्सा चीन में है तथा एक तिहाई भारत और बांग्लादेश में है। ब्रह्मपुत्र एशिया की सबसे बड़ी नदी है। चीन में इस नदी को यारलंग कहा जाता है। जब यह नदी चीन में बहती है तो इसमें 20 प्रतिशत पानी ही होता है, इसमें 60 प्रतिशत पानी भारत के अरुणाचल प्रदेश से आता है और शेष 20 प्रतिशत पानी असम सहित भारत के अन्य भागों और बांग्लादेश से आता है। इस पानी के कारण ही चीन की नज़र अरुणाचल प्रदेश पर बिगड़ी है और वह लगातार अरुणाचल पर अपना दावा करता आ रहा है, जिसका भारत खंडन करता आ रहा है।
भारत के पास चीन से ज्यादा पानी

अगर बात करें पानी के इस्तेमाल की तो चीन ने 2010 में ही यह समझ लिया था कि बढ़ते उद्योगों और व्यापार के साथ-साथ पानी की जरूरत भी बढ़ेगी। यह वास्तविकता भी है कि चीन में दिन प्रति दिन पानी की आवश्यकता बढ़ती जा रही है। उसे अपने उद्योगों के लिये पानी की अधिक से अधिक जरूरत है, इसलिये उसने तय कर लिया कि उसे कृषि क्षेत्र में कम पानी से अधिक उत्पादन की दिशा में असरकारक काम करना होगा। आपको जानकर हैरानी होगी कि रशिया के बाद भारत के पास पानी का स्रोत सबसे ज्यादा है। रूस में 13 प्रतिशत भूजल है और भारत के पास 9.6 प्रतिशत भूजल है। जबकि चीन के पास मात्र 2.8, अमेरिका के पास 7.0 प्रतिशत, बांग्लादेश के पास 6.4, नेपाल के पास 2.8 और सर्वाधिक नदियों वाले देश बांग्लादेश के पास मात्र 2.86 प्रतिशत पानी है।
चीन ने रूस के साथ किया है पानी के लिये करार

पानी की जरूरतों को देखते हुए चीन ने रूस के साथ पानी के लिये करार किया है और तेल व गैस की पाइपलाइन की तर्ज पर 2015 में पानी की 2000 कि.मी. लंबी दुनिया की सबसे बड़ी नहर के निर्माण के लिये समझौता किया है। यह नहर रूस से मध्य चीन तक आएगी। साइबेरिया की बाइकल झील से यह पानी मिलने के बाद चीन छोटी शाखा नहरों और पाइपलाइनों के जरिये अपने देश के अन्य भागों में पहुँचाएगा। चीन के नजरिये से यह पानी उसकी इंडस्ट्रीज़ और सिंचाई के काम में सहायक होगा। इसके अलावा भी चीन पानी के अन्य स्रोतों पर विचार कर रहा है और पानी की बचत के साथ उसका उपयोग करने में किसी प्रकार की कोई कोताही नहीं बरत रहा है। इस प्रकार वह पानी की बूँद-बूँद का समझदारी से उपयोग कर रहा है। पिछले 20 सालों से चीन इस रास्ते पर चलकर यह सुनिश्चित कर रहा है कि किस तरह कम पानी से ज्यादा से ज्यादा उत्पादन प्राप्त किया जाए। भारत को यही सबक चीन से सीखने की जरूरत है। भारत इस मामले में भाग्यशाली है कि उसके पास अभी तक इतना पानी उपलब्ध है कि उसे अपने किसानों को यह सिखाने की जरूरत नहीं पड़ी कि पानी का किफायत से उपयोग करें। भारत ने नदियों और तालाबों को प्रदूषित करने वाली इंडस्ट्रीज़ को दंडित भी नहीं किया और भूमिगत पानी निकालने वालों पर भी कोई सख्ती नहीं की।
चीन में पानी के इस्तेमाल की चार खास बातें
चीन ने कम पानी से ज्यादा पैदावार का रास्ता अपनाया है और इसके लिये पूरी व्यवस्था भी की है। इतना ही नहीं, जो इस सिस्टम को तोड़ता है, उसे पानी का अधिक उपयोग करने के लिये आर्थिक दंड के साथ-साथ अन्य कई चार्ज भी भुगतने पड़ते हैं। चीन ने अधिक पानी उपयोग करने वालों की सूची बनाई है, उनके लिये उचित मानक बनाया है। चीन दूषित पानी को रिसायकल करता है और कहा जा सकता है कि इस काम में वह दुनिया में सबसे अधिक अच्छा काम कर रहा है। चीन ने पानी को लेकर लड़ाई से बचने के लिये नीतियाँ भी बनाई हैं। यही कारण है कि पानी को लेकर भारत और चीन के बीच किसी प्रकार के घर्षण की कम ही आशंका है। दूसरी तरफ भारत में अलग-अलग राज्यों के बीच ही पानी को लेकर घर्षण और विवाद चलता रहता है। चीन ने शहरों में पानी की ऐसी व्यवस्था की है कि फ्लशिंग और वॉशिंग के लिये रिसायकल पानी का ही उपयोग होता है। ऐसी भी व्यवस्था की है कि वहाँ की जनता और कृषि कार्यों में उपयोग हो जाने वाला पानी भी फिर से कैसे उपयोग में लाया जाए। इस प्रकार भारत चीन से पानी को लेकर कई तरह की बातें सीख सकता है। भारत को भी इस विषय में जल्द से जल्द सोचने की जरूरत है और साथ ही असरकारक व्यवस्था तैयार करके उसे अमल में लाने की जरूरत है, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए।