रिपोर्ट : विनीत दुबे
अहमदाबाद, 4 सितंबर, 2019 (युवाPRESS)। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने लैंडर विक्रम का दूसरा डी-ऑर्बिटल ऑपरेशन बुधवार को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। इसी के साथ विक्रम लैंडर चांद के और करीब पहुँच गया तथा भारत और इसरो इतिहास रचने के करीब पहुँच गये। इसरो के अनुसार विक्रम लैंडर चांद की अंतिम यानी पाँचवीं कक्षा में सफलतापूर्वक पहुँच गया है। बुधवार तड़के 3.42 बजे ऑन बोर्ड संचालन तंत्र का उपयोग करते हुए विक्रम का दूसरा डी-ऑर्बिटल ऑपरेशन शुरू किया गया, जो मात्र 9 सेकंड में पूरा हो गया। अब विक्रम लैंडर की कक्षा 35 किलोमीटर गुणा 101 किलोमीटर है। यह ऑपरेशन पूरा होने के साथ विक्रम ने चंद्रमा की सतह पर उतरने के लिये आवश्यक कक्षा प्राप्त कर ली है। उल्लेखनीय है कि लैंडर विक्रम चांद के दक्षिणी ध्रुव पर 7 सितंबर की रात 1.30 से 2.30 बजे के बीच उतरने वाला है।
इतिहास रचने के करीब पहुँचा भारत
18 सितंबर-2008 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में आयोजित हुई केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में चंद्रयान-2 अभियान को स्वीकृति दी गई थी। इससे पहले 12 नवंबर-2007 को इसरो और रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रोसकोसमोस के प्रतिनिधियों के बीच चंद्रयान-2 पर साथ काम करने का समझौता किया था। इसमें ऑर्बिटर तथा रोवर की मुख्य जिम्मेदारी इसरो की तय की गई थी, जबकि रोसकोसमोस ने लैंडर की डिज़ाइन तैयार करने की जिम्मेदारी ली थी। अंतरिक्ष यान की डिज़ाइन को अगस्त-2009 मे पूरा किया गया था, इसमें दोनों देशों के वैज्ञानिकों ने योगदान दिया था। हालांकि बाद में इसरो ने चंद्रयान-2 के कार्यक्रम के अनुसार पेलोड को अंतिम रूप दे दिया था, परंतु जनवरी-2013 में इस अभियान को स्थगित कर दिया। इसके बाद 2016 के लिये अभियान को पुनः निर्धारित किया गया। क्योंकि रूस लैंडर को समय पर विकसित करने में असमर्थ था। रोसकोसमोस को बाद में मंगल ग्रह के लिये भेजे गये फोबोस-ग्रंट अभियान में मिली विफलता के कारण चंद्रयान-2 कार्यक्रम से अलग कर दिया गया और भारत ने चंद्र मिशन को स्वतंत्र रूप से विकसित करने का फैसला किया था। इसके बाद भारत ने 978 करोड़ रुपये की लागत से चंद्रयान-2 कार्यक्रम को सफलतापूर्वक पूरा किया और गत 22 जुलाई को दोपहर 2.43 बजे श्री हरिकोटा द्वीप के सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से प्रक्षेपण रॉकेट जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल-मार्क तृतीय (GSLV-MK 3) से अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया।
इसरो के अनुसार सफल प्रक्षेपण के बाद चंद्रयान-2 ने सफलतापूर्वक पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकलकर चांद की कक्षा में प्रवेश किया था, जहाँ यान से ऑर्बिटर अलग होकर चांद के करीब पहुँचा, 2 सितंबर को लैंडर विक्रम ऑर्बिटर से अलग हुआ और ऑर्बिटर से विपरीत दिशा में चांद की ओर चल पड़ा। अब लैंडर विक्रम ने दूसरा पड़ाव भी पार कर लिया है यानी कि डी-ऑर्बिटल ऑपरेशन भी बुधवार सुबह 3.42 बजे सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया। अब लैंडर विक्रम चांद की अंतिम कक्षा में यात्रा कर रहा है और 7 सितंबर की देर रात डेढ़ से ढाई बजे के दौरान चांद की सतह पर लैंडिग करेगा। लैंडिंग के दो घंटे बाद यानी सुबह लगभग साढ़े चार बजे लैंडर का रैंप खुलेगा, जिसमें से प्रज्ञान रोवर जो कि एक रोबोट है, वह बाहर आएगा और चांद की धरती पर 500 मीटर चलकर अलग-अलग प्रयोग करेगा। इन प्रयोगों का डेटा वह लैंडर को देगा, लैंडर ऑर्बिटर को डेटा पहुँचाएगा और ऑर्बिटर से डेटा धरती पर इसरो के दफ्तर में आएगा। इस प्रक्रिया में 15 मिनट का समय लगेगा। ज्ञात हो कि इस मिशन में चंद्रयान-2 के साथ कुल 13 स्वदेशी मुखास्त्र यानी वैज्ञानिक उपकरण भेजे गये हैं। इनमें तरह-तरह के कैमरे, स्पेक्ट्रोमीटर, रडार, प्रोब और सिस्मोमीटर शामिल हैं। जबकि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी एक पैसिव पेलोड भेजा है, जिसका उद्देश्य चांद और धरती के बीच की वास्तविक दूरी का पता लगाना है।
चांद पर मिल सकता है खनिजों का खजाना
इसरो के अनुसार इस प्रज्ञान रोवर द्वारा किये जाने वाले प्रयोगों से हमें चंद्रमा के बारे में अधिक से अधिक जानकारी मिलेगी। वहाँ मौजूद खनिजों के बारे में भी पता चलेगा। चंद्रमा पर पानी की उपलब्धता और उसकी रासायनिक संरचना के बारे में भी जानकारी मिलेगी। यह अभियान सफल रहा तो भारत रूस, अमेरिका और चीन के बाद चांद की सतह पर रोवर उतारने वाला चौथा देश बन जाएगा। इस साल की शुरुआत में इज़राइल ने यह प्रयोग किया था, परंतु सफल नहीं हुआ था। उधर, धरती और चांद पर मूल्यवान धातुओं की मौजूदगी के बारे में किये गये एक अध्ययन के अनुसार पृथ्वी के इकलौते उपग्रह चांद के गर्भ में भी मूल्यवान धातुओं का बड़ा भंडार छुपा हो सकता है। कनाडा के डलहौजी विश्व विद्यालय के प्रोफेसर जेम्स ब्रेनन का कहना है कि चांद पर मौजूद ज्वालामुखी पत्थरों में पाये जाने वाले सल्फर का संबंध चांद के गर्भ में छुपे आयरन सल्फेट से जोड़ने में सफल रहे हैं। धरती पर मौजूद धातु भंडार की जांच से पता चलता है कि प्लैटिनम और पलाडियम जैसी मूल्यवान धातुओं की मौजूदगी के लिये आयरन सल्फाइड बहुत महत्वपूर्ण है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि चांद का निर्माण धरती से निकले एक बड़े ग्रह के आकार के गोले से लगभग 4.5 अरब साल पहले हुआ था। इसलिये दोनों के इतिहास में काफी समानताएँ हैं। दोनों की बनावट भी मिलती-जुलती है। नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित अध्ययन में चांद को लेकर किये गये अध्ययन का ब्यौरा दिया गया है। ब्रेनन के अनुसार हमारे नतीजे बताते हैं कि चंद्रमा की चट्टानों में सल्फर की मौजूदगी, उसकी गहराई में आयरन सल्फाइड की उपस्थिति का महत्वपूर्ण संकेत है। ब्रेनन के विचार से जब लावा बना, तब कई बहुमूल्य धातुएँ उसके नीचे दब गई हैं।