कोरोना महामारी और Lockdown के चलते लाखों मज़दूर बेघर हो गए , काम न मिलने की वजह से भूखे प्यासे अपने गांव की और पैदल ही चल दिए , ऐसे में दिल को दहला देने वाली खबरे रोज़ आ रही हैं , कोई रेल से कट गया कोई रोड में कुचला जा रहा है , भूखे प्यासे गरीबों के बच्चों की दुर्दशा देखकर कोई भी कोमल हृदय वाला रो देगा ऐसे में भारत के महान कवी तो डॉ कुमार विश्वास की कलम में जैसे आंसुओं की स्याही भर गयी हो ,जहाँ डॉ विश्वास गरीबों के दर्द में दुखी पाए गए वही उनका गुस्सा सत्ता में बैठे कुर्सी के मतवालों पे भी फुट रहा है , और डॉ कुमार का गुस्सा जायज़ भी है , क्या भारत आज इतना विवश है की अपने ही देश में मज़दूरों की दुर्दशा हो गयी।
Jawaab Mangenge | जवाब माँगेंगे | Nazm by Dr Kumar Vishwas
ये लोग एक दिन जवाब माँगेंगे!!
शहर की रौशनी में छूटा हुआ, टूटा हुआ
सड़क के रास्ते से गाँव जा रहा है गाँव…
बिन छठ, ईद, दिवाली या ब्याह-कारज के
बिलखते बच्चों को वापस बुला रहा है गाँव…
रात के तीन बज रहे हैं और दीवाना मैं
अपने सुख के कवच में मौन की शर-शय्या पर
अनसुनी सिसकियों के बोझ तले, रोता हुआ
जाने क्यूँ जागता हूँ, जबकि दुनिया सोती है…
मुझको आवाज़ सी आती है कि मुझ से कुछ दूर
जिसके दुर्योधन हैं सत्ता में वो भारत माता
रेल की पटरियों पे बिखरी हुई ख़ून सनी
रोटियों से लिपट के ज़ार-ज़ार रोती हैं
वो जिनके महके पसीने को गिरवी रखकर ही
तुम्हारी सोच की पगडंडी राजमार्ग बनी
लोक सड़कों पे था और लोकशाह बंगले में?
कभी तो लौट कर वो ये हिसाब माँगेंगे
ये रोती माँएँ, बिलखते हुए बच्चे, बूढ़े
बड़ी हवेलियो, ख़ुशहाल मोहल्ले वालो
कटे अंगूठों की नीवों पे खड़े हस्तिनापुर!
ये लोग एक दिन तुझसे जवाब माँगेंगे ~ Dr. Kumar Vishwas
मजदूरों ऐसी हालत के लिए सरकार को पूर्ण रूप से दोषी ठहराते हुए डॉ विश्वाश ने तो शरेआम कह दिया की सत्ता के नशे में मदहोश मतवालों यह मज़दूर एक दिन तुमसे जवाब मांगेंगे। क्या डॉ कुमार की यह आह सत्ताधारियों के दिल पसीज पायेगी ? क्या ये लोकतंत्र के पुजारी इस दर्द भरे मौसम को बदल पाएंगे। क्या दर्द के मारे राहगीर सरकार से समय रहते कोई राहत की उम्मीद कर सकते हैं ? क्या डॉ कुमार सत्ता में बैठे लोगो को जगा पाएंगे ? आज कुमार अकेले नहीं हैं उनके साथ लाखों लोग हैं जो यह सवाल करते हैं की आखिर गरीब मज़दूरों को भारत के नागरिक होने के नाते संभाला क्यों नहीं जा रहा ?
मजदूरों की ख़राब दशा देखकर कई बार मन भावुक हो जाता है , आंखे नम हो जाती हैं। आज चाहकर भी हम कुछ नहीं कर पा रहे , सरकार से आशा करने और रहम की गुहार करने के इलावा आखिर करें तो क्या करें गरीब मज़दूरों का उनके मासूम बच्चों का दर्द बांटें भी तो कैसे? आज भारत इतना मज़बूर कैसे हो गया ?
अपने एक Tweet में प्रधानमंत्री नरेंदर मोदी को जल्द से जल्द मज़दूरों को सहयता प्रदान करने का निवेदन किया।
नज़्म के जरिये पैदल चलने वाले राहगीरों का दर्द बाँटने और सत्ता में बैठे लोगो को जगाने की कोशिश कर रहा हूँ
~ आई के शर्मा (मुख्य सम्पादक , युवा प्रेस )
कोई तो करे कोशिश कोई तो जिम्मा उठाये Nazm by I K Sharma
कोई तो करे कोशिश कोई तो जिम्मा उठाये
इन गरीब मज़दूरों को सुरक्षित उनके घर पहुचाये
बस इतनी सी गलती है अपना गांव छोड़ थे आये
पेट की आग बुझाने को शहर की धुप में जलने आये
नंगे पांव भूखे प्यासे पगडण्डी भी दिए भुलाये….. कोई तो करे कोशिश कोई तो जिम्मा उठाये
महामारी से बच भी जाएं
पैदल सफर यह कट भी जाये
गरीबी लाचारी से कौन बचाये ?…..कोई तो करे कोशिश कोई तो जिम्मा उठाये
मेहनत करके खाने वाले हमने हाथ कभी फैलाये न
शहरों की शौहरत वालों को जाने क्यों हम अब भायें न
पल भर में वो भूल गए बरसों जिनके बोझ उठाये….कोई तो करे कोशिश कोई तो जिम्मा उठाये
दर्द के मारे हम बेचारे हर गम हसकर सेह लेते
महामारी के मारे हैं हम दुनिया को भी कह लेते
पैदल चलते मासूमों का दर्द हम से सहा न जाये…..कोई तो करे कोशिश कोई तो जिम्मा उठाये
कोई तो करे कोशिश कोई तो जिम्मा उठाये
इन गरीब मज़दूरों को सुरक्षित उनके घर पहुचाये ~आई के शर्मा