* राहुल का कश्मीर पर पहला PURE ‘PRO-INDIAN’ TWEET
* कश्मीर को भारत का आंतरिक मामला बताया, पाकिस्तान को लताड़ा
* धारा 370 पर ‘आज़ाद’ से मुक्त होने जा रही कांग्रेस ?
* वरिष्ठ नेताओं के बाद राहुल ने मिलाया देश के सुर में सुर
विशेष टिप्पणी : कन्हैया कोष्टी
अहमदाबाद 28 अगस्त, 2019 (युवाPRESS)। जम्मू-कश्मीर से धारा 370 समाप्त करने के भारत के फ़ैसले पर शुरुआती उग्र रवैया अपनाने और देश की जनता की आलोचनाओं के चलते मुँह की खाने वाली कांग्रेस और उसके कई नेताओं की धीरे-धीरे अकल ठिकाने आ रही है। इसी कड़ी में कांग्रेस के शीर्ष नेता व पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने पहली बार कश्मीर पर ऐसा TWEET किया, जो PURE PRO-INDIAN लगा। इससे पहले तक कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा तक ने कश्मीर से धारा 370 हटाने पर भारी उत्पात मचा रखा था, परंतु राहुल के आज सुबह किए गए ट्वीट के बाद ऐसा लगता है कि कांग्रेस और राहुल अब जम्मू-कश्मीर मुद्दे पर कश्मीर से आने वाले अपने वरिष्ठ नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद की विचारधारा से आज़ाद होने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
सबसे पहले बात करते हैं राहुल गांधी की, जो 5 अगस्त को कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद से ही मोदी सरकार के विरुद्ध बिना-सोचे समझे मोर्चा खोले बैठे थे। उन्होंने कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने को कई बार संपूर्ण असंवैधानिक करार दिया। उनके कई बयान पाकिस्तानी हुक़्मरानों और नेताओं से मिलते-जुलते नज़र आए, परंतु बुधवार सुबह 9.10 बजे राहुल की मति अचानक बदली। उन्होंने लगभग पहली बार कश्मीर पर भारत की जनता को रास आए, ऐसा ट्वीट किया। राहुल ने सुबह 9.10 बजे 2 ट्वीट किए। राहुल ने पहले ट्वीट में कहा, ‘मैं कई मुद्दों पर इस (मोदी) सरकार से असहमति रखता हूँ, परंतु मैं एक चीज स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि कश्मीर भारत का आतंरिक मुद्दा है और पाकिस्तान या दुनिया के किसी देश के लिए इसमें दखल देने की कोई जगह नहीं है।’ इतना ही नहीं, अब तक पाकिस्तान परस्त रवैये का एहसास दिला रहे राहुल ने अपने दूसरे ट्वीट में पाकिस्तान पर हमला करते हुए कहा, ‘ ‘जम्मू-कश्मीर में हिंसा पाकिस्तान प्रायोजित है, जो (पाकिस्तान) पूरी दुनिया में आतंकवाद का समर्थन के रूप में कुख्यात है।’
तो नाना की ‘भूल’ मानेंगे राहुल ?

भारत के अधिकांश इतिहासविद् जम्मू-कश्मीर को विवादास्पद राज्य बनाने का ‘कुश्रेय’ राहुल के नाना यानी भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को देते हैं। वे नेहरू ही थे, जिन्होंने कश्मीर को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच 1947 में हुए पहले युद्ध के दौरान उस समय युद्धविराम की घोषणा की, जब भारत की सेना लगातार पूरे कश्मीर पर कब्जा करने की ओर अग्रसर थी, परंतु युद्ध विराम की घोषणा वाले दिन जम्मू-कश्मीर का एक तिहाई (1/3) हिस्सा पाकिस्तानी सेना के कब्जे में था, जिसे आज हम पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) कहते हैं। वह नेहरू ही थे, जिन्होंने आकाशवाणी से राष्ट्र के नाम प्रसारित अपने पहले संदेश में घोषणा की थी कि जम्मू-कश्मीर का मसला संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता में सुलझाया जाएगा। वह नेहरू ही थे, जिन्होंने श्रीनगर के लाल चौक में तिरंगा फहराते हुए वहाँ मौजूद पाकिस्तान परस्त कश्मीरी नेताओं से वायदा किया था कि कश्मीर पर जनमत संग्रह कराया जाएगा। वह नेहरू थे, जिन्होंने जम्मू-कश्मीर में पहले अनुच्छेद 35ए और फिर उसे धारा 370 के रूप में लागू किया। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि क्या राहुल गांधी मोदी सरकार के कई कदमों से असहमति रखने के बावजूद अपने नाना नेहरू द्वारा कश्मीर पर की गई भूलों को स्वीकार करने का साहस करेंगे ? क्या वे मोदी सरकार के धारा 370 हटाने के पीछे रहे कश्मीर के विकास और जम्मू-कश्मीर को वास्तव में भारत का अभिन्न अंग बनाने के विशाल दृष्टिकोण के साथ एक ज़िम्मेदार विपक्षी नेता की तरह सहमति साधने का साहस करेंगे ?
कश्मीर पर आज़ाद से ‘आज़ाद’ हो रही कांग्रेस ?

कश्मीर पर कांग्रेस के कड़े रवैया का असली नेतृत्व कश्मीर से आने वाले वरिष्ठ कांग्रेस नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद कर रहे हैं। राज्यसभा में विपक्ष के नेता जैसे ज़िम्मेदार पद पर रहते हुए आज़ाद ने कश्मीर पर मोदी सरकार के विरुद्ध जो बयानबाजी की, वह काफी हद तक मुट्ठी भर पाकिस्तान परस्त भारतीयों-कश्मीरियों, पाकिस्तानी हु़क्मरानों और पाकिस्तानी विपक्षी नेताओं के बयानों से मिलती-जुलती थी। इसमें भी लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल (CCP) के नेता अधीर रंजन चौधरी ने तो कश्मीर पर कई अनर्गल बयान देकर कांग्रेस की पूरे देश और जनता के बीच भारी फज़ीहत कराई, परंतु राहुल के आज के ट्वीट के बाद स्पष्ट हो गया है कि अधीर रंजन ने लोकसभा में कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र के विचाराधीन मुद्दा बताने की जो भूल की थी, उसे राहुल और कांग्रेस ने सुधारने की कोशिश की है। राहुल के ट्वीट से यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि वे मोदी सरकार को लेकर अपनी पार्टी की नीति में बदलाव लाने की वक़ालत कर रहे अपने वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं से कुछ सीखे हैं। मोदी सरकार के कश्मीर से 370 हटाने के फ़ैसले का जब कांग्रेस चौतरफा विरोध कर रही थी, तब सबसे पहले वरिष्ठ कांग्रेस नेता जनार्दन द्विवेदी ने इसका समर्थन करने का साहस किया था। इसके बाद सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली से ही कांग्रेस की एक विधायक ने मोदी का समर्थन किया। इसके बाद तो जयराम रमेश से लेकर शशि थरूर और अभिषेक मनु सिंघवी तक कई नेताओं ने मोदी के हर फ़ैसले का विरोध करने की नीति को अनुचित बताया। कांग्रेस दिग्गज नेताओं के मोदी पर बदले सुर से ऐसा लगता है कि कांग्रेस कश्मीर पर ग़ुलाम नबी आज़ाद की सीमित सोच के दायरे से आज़ाद होने की ओर अग्रसर हो रही है।