गुजरात में लोकसभा चुनाव 2019 के लिए तीसरे चरण में मंगलवार को सभी 26 लोकसभा सीटों के लिए मतदान होने जा रहा है। राज्य के मतदाताओं के पास दो ही मजबूत विकल्प हैं। एक तरफ केन्द्र-राज्य में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा-BJP) और दूसरी तरफ कांग्रेस। लोकसभा चुनाव 2014 की बात करें, तो भाजपा ने सभी 26 सीटें जीती थीं, जबकि पहली बार कांग्रेस खाता तक नहीं खोल सकी थी। ऐसे में सवाल यह उठता है कि 2019 में भी भाजपा टार्गेट 26 हासिल कर सकेगी ? भाजपा के लिए यह इसलिए कठिन बताया जा रहा है, क्योंकि विधानसभा चुनाव 2017 में उसे 2014 जैसी सफलता नहीं मिली थी। दूसरी तरफ 2014 के मुकाबले कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है, परंतु उसके समक्ष 2017 में बढ़े जनाधार के आधार पर भाजपा से कुछ सीटें छीनने की चुनौती है।
1990 के दशक से भाजपा का गढ़ बने गुजरात में मंगलवार को लोकसभा चुनाव के लिये मतदान होगा। हमेशा की तरह शहरी क्षेत्रों में भाजपा मजबूत दिखाई दे रही है और अपनी जीत के प्रति आश्वस्त भी लग रही है। वहीं कुछ सीटों पर कांग्रेस भी अपनी जीत के प्रति आश्वस्त लग रही है। हालांकि ग्रामीण मतदाताओं के रवैये को लेकर दोनों ही प्रमुख प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दल असमंजस में हैं और वे इन मतदाताओं का मूड नहीं भांप पा रहे हैं। इसलिये ग्रामीण इलाकों में कड़ी टक्कर देखने को मिल सकती है।
मध्य और दक्षिण गुजरात में जहां भाजपा मजबूत दिखाई दे रही है, वहीं पाटीदार और ठाकोर समुदाय की बहुलता वाले सौराष्ट्र तथा उत्तरी गुजरात में दोनों दलों के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है। इन इलाकों में कई सीटों पर दोनों ही दलों ने एक ही समुदाय के उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारकर मुकाबले को रोचक बना दिया है। इसके अलावा आरक्षित सीटों पर भी हमेशा की तरह कड़ा मुकाबला देखने को मिलेगा।
भाजपा अहमदाबाद पूर्व, अहमदाबाद पश्चिम, गांधीनगर, वड़ोदरा, सूरत, नवसारी और राजकोट सीटों को लेकर आश्वस्त दिखाई दे रही है। वहीं कांग्रेस खेड़ा, आणंद, अमरेली, भरूच, वलसाड़ तथा सुरेन्द्रनगर की सीटों को लेकर काफी आशान्वित है। इसके अलावा सौराष्ट्र में जिन सीटों पर कड़ा या नजदीकी मुकाबला देखने को मिल सकता है, उनमें जूनागढ़, पोरबंदर, भावनगर और कच्छ की सीटें हैं। इसी प्रकार उत्तर गुजरात में मेहसाणा, पाटण, साबरकांठा और बनासकांठा सीटों के अतिरिक्त मध्य गुजरात में खेड़ा, छोटा उदेपुर, पंचमहाल और दाहोद सीटों पर कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है।
चूँकि गुजरात भाजपा का मजबूत गढ़ है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का गृह राज्य भी है। इसलिये कांग्रेस यहाँ भाजपा को कड़ी चुनौती देने की रणनीति से जोर लगा रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को उत्साह बढ़ाने वाले नतीजे मिले थे और भाजपा की सीटें 100 के अंदर सिमट गई थीं। इसलिये कांग्रेस को लगता है कि गुजरात के मतदाताओं का भाजपा को लेकर मूड बदला है, वहीं दूसरी तरफ भाजपा 2014 के परिणामों को दोहराने के लिये पूरा दम-खम लगा रही है।
आंकड़ों के लिहाज से देखें तो पिछले लोकसभा चुनाव 2014 में मोदी लहर के चलते राज्य की सभी 26 सीटें भाजपा ने जीती थी, परंतु यदि वोटों का औसत देखें तो 2009 के लोकसभा चुनाव में गुजरात में भाजपा को 46.5 प्रतिशत वोट मिले थे, वहीं कांग्रेस को 43.4 प्रतिशत वोट मिले थे। इस प्रकार दोनों के बीच वोटों के औसत में मात्र 3 प्रतिशत का अंतर था। 2014 में मोदी लहर में भाजपा का औसत बढ़कर 60.1 प्रतिशत तक पहुंच गया था, जिससे कांग्रेस को मिले वोटों का औसत नीचे गिरकर 33.5 प्रतिशत पर लुढ़क गया था। हालांकि कांग्रेस इस बार उसका वोटों का औसत तेजी से ऊंचा जाने की उम्मीद कर रही है, वहीं भाजपा को अपने चुनावी चाणक्य कहलाने वाले पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की चुनावी रणनीति पर पूरा भरोसा है और वह उसी रणनीति पर काम करके एक बार फिर 2014 के परिणामों को दोहराने की उम्मीद कर रही है।