विश्लेषण : कन्हैया कोष्टी
लोकसभा चुनाव 2019 एक विचित्र प्रकार की लड़ाई से गुज़र रहा है, जिसमें एक तरफ तो नरेन्द्र मोदी हैं और दूसरी तरफ उन्हें चुनौती देने वालों की भरमार है, परंतु इस भरमार ने ही भ्रम की स्थिति पैदा कर रखी है। मोदी को हराने के लिए चुनाव से पहले तमाम मोदी विरोधियों ने एक-दूसरे के हाथ में हाथ डाल कर महागठबंधन की परिकल्पना खड़ी की, परंतु चुनावी ज़मीन पर महागठबंधन बिखर कर जहाँ कुछ राज्यों में गठबंधन तक सीमित रह गया, वहीं कुछ राज्यों में मोदी विरोधी नेता सिर्फ मोदी ही नहीं, अपितु एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं।
यद्यपि आज बात विपक्ष के बिखराव की नहीं, अपितु महागठबंधन की परिकल्पना से इतर सिर्फ कुछ राज्यों तक सिमट कर रह गए गठबंधन के गणित और भाजपा के भूगोल की करने जा रहे हैं। मोदी विरोध के नाम पर महागठबंधन की परिकल्पना करने वालों का नेतृत्व करने का दावा करने वाली कांग्रेस को राज्यों की चुनावी ज़मीन पर ऐसी पटखनी मिली कि मोदी विरोध के गुब्बारे की आधी हवा चुनाव से पहले ही निकल गई। यद्यपि इसके बावजूद कुछ राज्यों में गठबंधन नजर आ रहा है, परंतु गठबंधन का यह गणित भाजपा के उस भूगोल पर भारी पड़ सकता है, जिसमें भाजपा ने चुनावी ज़मीन पर अपने गढ़ों वाले राज्यों के अलावा नए राज्यों में भी जगह बनाने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा दिया है।
उत्तर प्रदेश
गठबंधन के गणित बनाम भाजपा के भूगोल की चर्चा की शुरुआत उत्तर प्रदेश से करते हैं, जहाँ मोदी के विरुद्ध समाजवादी पार्टी (सपा-SP), बहुजन समाज पार्टी (बसपा-BSP) और राष्ट्रीय लोकदल (रालोद-RLD) को सबसे मजबूत गठबंधन माना जा रहा है, परंतु विडंबना यह है कि इस गठबंधन में कांग्रेस शामिल नहीं है। इसके चलते उत्तर प्रदेश में अधिकांश सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। गठबंधन का गणित इसी कारण गड़बड़ाने की पूरी आशंका है। यदि मोदी विरोधी मतों का बँटवारा हुआ, तो यहाँ गठबंधन के गणित पर भाजपा का भूगोल भारी पड़ सकता है।
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में कांग्रेस को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा-NCP) से गठबंधन करने में सफलता मिली है, परंतु यहाँ भी कांग्रेस के सहयोगी होने के बावजूद एनसीपी नेता शरद पवार यह मानने को कतई तैयार नहीं हैं कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं। एक तरफ कांग्रेस-एनसीपी का अंतर्विरोध और विरोधाभास है, तो दूसरी तरफ चार साल तक मीठी लड़ाई करने वाला भाजपा-शिवसेना गठबंधन है। इस गठबंधन को तीन तरफ से फायदा होने की संभावना है। एक तो मोदी का चेहरा, दूसरा राज्य की देवेन्द्र फडणवीस सरकार और तीसरा विरोधी गठबंधन का अंतर्विरोध। ऐसे में यहाँ भी गठबंधन के गणित पर भाजपा का भूगोल भारी पड़ सकता है।
बिहार
बिहार में भी कांग्रेस को राष्ट्रीय जनता दल (राजद-RJD) के रूप में साथी मिल गया है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार भी घोषित कर चुके हैं, परंतु चुनावी ज़मीन पर इस गठबंधन को मोदी की लोकप्रियता और नीतिश शासन की सफलता के आगे कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है।
जम्मू-कश्मीर
जम्मू-कश्मीर में त्रिकोणीय मुकाबला है और इसी कारण यहाँ गठबंधन का गणित गड़बड़ा सकता है। एक तरफ भाजपा है, तो उसके खिलाफ कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) का गठबंधन और पीपुल्ड डेमोक्रैटिक पार्टी (PDP) चुनाव मैदान में हैं। भाजपा से सीधे मुकाबले में कांग्रेस वैसे ही ज्यादातर कमज़ोर साबित होती है। रही बात एनसी-पीडीपी की, तो दोनों पार्टियों के बीच खुद को कश्मीरियों की हितैषी बताने की होड़ है। इस होड़ में मोदी विरोधी मत इन दोनों पार्टियों में बँटेंगे और फायदा भाजपा के भूगोल को ही होगा।
तमिलनाडु
कांग्रेस के गठबंधन करने में एक और राज्य में सफलता मिली है। वह है तमिलनाडु, जहाँ कांग्रेस और द्रविड़ मुनेत्र कषगम् (द्रमुक-DMK) के बीच गठबंधन है। दूसरी तरफ भाजपा ने भी यहाँ सत्तारूढ़ अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम् (अन्नाद्रमुक-AIADMK) के साथ गठबंधन किया है। इस बार तमिलनाडु में करुणानिधि और जयललिता जैसे बड़े चेहरे नहीं हैं। ऐसे में डीएमके राहुल के, तो राहुल डीएमके के भरोसे हैं। इसी प्रकार एआईएडीएमके मोदी के भरोसे और मोदी एआईएडीएमके के भरोसे है।
कर्नाटक
कर्नाटक में कांग्रेस और जनता दल ‘सेकुलर’ (JDS) के बीच गठबंधन है, परंतु राज्य की गठबंधन सरकार के अंतर्विरोधों और कथित विफलताओं को भाजपा ने मुद्दा बनाया है। ऐसे में यहाँ एक तरफ मोदी की लोकप्रियता और भाजपा का मजबूत ज़मीनी संगठन है, तो दूसरी तरफ कांग्रेस-जेडीएस के पास मोदी विरोध के अलावा कहने के लिए कुछ नहीं है। इस तरह गठबंधन का गणित भाजपा के भूगोल के आगे बिगड़ सकता है।
पश्चिम बंगाल
दिल्ली-बेंगलुरू-कोलकाता तक दिखाई देने वाला मोदी विरोधी महागठबंधन यहाँ टुकड़े-टुकड़े गैंग में बदल गया है। मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (TMC), कांग्रेस और वामपंथी तीनों ही दल मोदी के विरुद्ध तो हैं, परंतु तीनों में कोई गठबंधन नहीं हुआ है।
आंध्र-तेलंगाना
कांग्रेस आंध्र प्रदेश में मोदी विरोधी चंद्रबाबू नायडू की पार्टी तेलुगू देशम् पार्टी (TDP) से और तेलंगाना में मोदी विरोधी के. चंद्रशेखर राव की पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) से कोई समझौता नहीं कर पाई। इन दोनों ही राज्यों में एक तीसरी पार्टी भी है वायएसआर कांग्रेस। जगन मोहन रेड्डी की इस पार्टी ने भी किसी से गठबंधन नहीं किया है। हालाँकि रेड्डी कभी भी मोदी विरोधी मंच पर नज़र नहीं आए। कुल मिला कर इन दोनों राज्यों में भी गठबंधन का गणित नदारद है, तो भाजपा का भूगोल मोदी विरोधी मतों के बँटवारे पर टिका हुआ है।
केरल-त्रिपुरा
केरल और त्रिपुरा में भी मोदी विरोधी वामपंथियों और कांग्रेस के बीच कोई समझौता नहीं हुआ है। यहाँ भी गठबंधन नदारद है, जिसके चलते दोनों राज्यों में मुकाबला त्रिकोणीय है, जिसका फायदा भाजपा को मिल सकता है।