रिपोर्ट : कन्हैया कोष्टी
अहमदाबाद 19 अगस्त, 2019 (युवाPRESS)। भारत ही नहीं, दुनिया का कोई भी देश जब कोई उपलब्धि हासिल करता है, तो उसका पहला श्रेय उस देश के राजनीतिक-शासकीय नेतृत्व को मिलता है। यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि किसी भी राष्ट्र के लिए कुछ भी अच्छा या बुरा होने के पीछे उस राष्ट्र पर शासन करने वाले राजनीतिक-शासकीय नेतृत्व की इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है। यही कारण है कि भारत ने जब-जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की मजबूत छवि प्रस्तुत करने वाले कोई कारनामे किए, तो उसका श्रेय तत्कालीन प्रधानमंत्रियों को ही दिया गया। बात पिछले पाँच वर्षों के कालखंड की करें, तो सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक, मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने से लेकर जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने जैसे साहसिक निर्णयों के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पूरा देश प्रशंसा करता नज़र आया।
परंतु शासकीय नेतृत्व के ऐसे साहसिक निर्णयों के पीछे, निर्णय लेने से पहले और निर्णय लेने के बाद की तमाम परिस्थितियों में देश की ढाल बनने का काम करते हैं प्रशासनिक अधिकारी। शासन तो निर्णय कर लेता है, परंतु उसे क्रियान्वित करने का उत्तरदायित्व प्रशासन पर होता है। इसमें भी जब देश किसी ऐसे मामले पर कोई निर्णय लेता है, जिसका प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ने वाला हो, तब सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी विदेशी धरती पर बैठे अधिकारियों पर आन पड़ती है। उन्हें पूरी दुनिया के लोगों के सवालों का सामना करना पड़ता है और यही उनकी शासकीय सेवा और राष्ट्र सेवा की सबसे बड़ी कसौटी होती है।
पाकिस्तान-चीन की बोलती कर दी बंद

ऐसे ही एक शासकीय सेवक हैं सैयद अकबरुद्दीन, जो दुनिया की पंचायत यानी संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) में स्थायी प्रतिनिधि हैं। अकबरुद्दीन ने वैसे तो अनेक मौकों पर दुनिया की इस पंचायत में भारत का मजबूत पक्ष रखा और भारत विरोधी शक्तियों का कड़े शब्दों में प्रतिकार किया, परंतु इन दिनों अकबरुद्दीन फिर एक बार अपनी देशभक्ति के ऐसे जज़्बे के कारण चर्चा में हैं। जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद पाकिस्तान के दबाव में चीन की पहल पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (UNSC) की बैठक हुई, परंतु पाकिस्तान के हाथ लगा ठेंगा। यूएनएससी ने कश्मीर को भारत-पाकिस्तान का द्विपक्षीय मुद्दा बता कर दखल देने से इनकार कर दिया और अकबरुद्दीन फिर एक बार कुशल कूटनीतिज्ञ सिद्ध हुए। अकबरुद्दीन भले ही यूएनएससी की इस अनौपचारिक बैठक का हिस्सा नहीं थे, परंतु जैसे ही यूएनएससी ने दखल से इनकार किया, अकबरुद्दीन मीडिया से रूबरू हुए। उन्होंने पाकिस्तान सहित दुनिया भर के पत्रकारों के समक्ष सीना तान कर कहा कि जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने का निर्णय पूरी तरह भारत का आंतरिक मामला है। इतना ही नहीं, अकबरुद्दीन ने उस समय अत्यंत घातक रणनीति व कूटनीति का परिचय दिया, जब एक पाकिस्तानी पत्रकार ने पूछा कि भारत-पाकिस्तान वार्ता कब शुरू होगी। अकबरुद्दीन ने खड़े होकर उस पाकिस्तानी पत्रकार से हाथ मिलाते हुए कटाक्ष भरे अंदाज में कहा, ‘आइए आपसे ही शुरुआत करते हैं।’ इतना ही नहीं, इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए अकबरुद्दीन ने पाकिस्तान और उसके परम मित्र चीन को भी कड़ा संदेश दे दिया कि दोनों देश भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने से दूर रहें।
कौन हैं सैयद अकबरुद्दीन ?

यह पहला मौका नहीं था जब सैयद अकबरुद्दीन ने दुनिया की पंचायत में तिरंगे की शान को बढ़ाया हो। इससे पहले भी जब-जब भारत किसी निर्णय को लेकर दुनिया के सवालों से घिरा, तब-तब अकबरुद्दीन ने तिरंगे की शान को शानदार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1985 से भारतीय विदेश सेवा (IFS) से जुड़ने वाले अकबरुद्दीन अपने 44 वर्षों के करियर में कई पदों पर कार्य किया, परंतु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अकबरुद्दीन की कूटनीतिक कुशलता को भाँप लिया और सत्ता संभालने के डेढ़ वर्ष के बाद ही सैयद अकबरुद्दीन को यूएन में भारत का स्थायी प्रतिनिधि नियुक्त कर दिया। 1 जनवरी, 2016 से लेकर अब तक अकबरुद्दीन लगातार यूएन में भारत का डंका बजा रहे हैं। पाकिस्तान प्रेरित आतंकवादी हमलों, भारतीय सेना की सर्जिकल स्ट्राइक, वायुसेना की एयर स्ट्राइक और धारा 370 से मचे बवाल तक अकबरुद्दीन ने दुनिया की इस पंचायत में भारत के शक्तिशाली स्तंभ के रूप में कार्य किया। 27 अप्रैल, 1960 को हैदराबाद में जन्मे सैयद अकबरुद्दीन शिक्षित परिवार से आते हैं। उनके पिता एस. बशीरुद्दीन कई वर्षों तक उस्मानिया विश्वविद्यालय में पत्रकारिता व संचार विभाग के प्रमुख रहे। बशीरुद्दीन ने कतर में भारत के राजदूत, डॉ बीआर अंबेडकर ओपन यूनिवर्सिटी में वाइस चांसलर और पुणे स्थित फिल्म और टेलीविजन संस्थान में रिसर्च विंग के डायरेक्टर की जिम्मेदारी भी निभाई, जबकि उनकी माँ ज़ेबा बशीरुद्दीन श्रीसत्य सांई यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी विभाग की प्रोफेसर थीं। अकबरुद्दीन की पत्नी का नाम पद्मा है, जिनसे उनके दो बेटे हैं। अकबरुद्दीन को खेलों को लेकर काफी दीवानगी है।
भारतीय विदेश नीति में नई ऊर्जा का संचार किया

सैयद अकबरुद्दीन ने 1985 में भारतीय विदेश सेवा जॉइन की। अकबरुद्दीन ने वियेना स्थित अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अभिकरण (IAEA) पाँच वर्षों तक भारत का प्रतिनिधित्व किया। 2011 में वे भारत लौटे। इससे पहले उन्होंने 2000 से 2004 के दौरान पश्चिम एशिया के मुद्दों पर भारतीय विशेषज्ञ के रूप में सेवाएँ दीं। 2004 से 05 तक वे विदेश सचिव कार्यालय में निदेशक रहे। 2012 में मनमोहन सरकार ने अकबरुद्दीन को भारतीय विदेश विभाग का प्रवक्ता नियुक्त किया। इस पद पर वे 2015 तक रहे। सैयद अकबरुद्दीन अपने कैरियर में पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग में काउंसेलर के पद पर रह चुके हैं। इसके साथ ही वे सऊदी अरब और मिस्र में भी काम कर चुके हैं। 1995 से 1998 तक वे संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रथम सचिव थे। क्रिकेट के फैन अकबरुद्दीन ने राजनीतिक विज्ञान और अंतरराष्ट्रीय संबंध में एमए किया है। अक्टूबर-2015 में भारतीय राजधानी दिल्ली में हुए भारत-अफ्रीका फोरम समिट में अकबरुद्दीन ने ऐसे समय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जब अफ्रीकी देशों में चीन का दबदबा बढ़ता जा रहा था। अकबरुद्दीन इस समिट के मुख्य संयोजक थे। इस समिट में सभी 54 अफ्रीकी देशों ने भाग लिया था। अकबरुद्दीन ने अफ्रीकी देशों में भारत की पैठ बढ़ाने की महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी निभाई।