मालदीव संकट (Maldives Crisis): भारत के पड़ोस में बसा द्वीपीय देश (आइलैंड) मालदीव इन दिनों राजनैतिक उठा-पठक से गुजर रहा है। दरअसल बीते गुरुवार को मालदीव के सुप्रीम कोर्ट ने जेल में बंद पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद समेत सभी विपक्षी नेताओं और साथ ही उन 12 सांसदों को भी रिहा करने का आदेश दिया था, जिन्होंने मौजूदा अब्दुल यामीन सरकार से नाता तोड़कर विपक्षी मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी से हाथ मिला लिया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर ये होगा कि मौजूदा अब्दुल यामीन सरकार अल्पमत में आ जाएगी और सरकार के गिरने का खतरा हो जाएगा।
यही वजह है कि अब्दुल यामीन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के जजों को गिरफ्तार कर लिया है और उनका फैसला मानने से इंकार कर दिया है। वहीं सरकार ने सुरक्षा बलों को निर्देश दिए हैं कि वह सुप्रीम कोर्ट का फैसला ना माने और राष्ट्रपति अब्दुल यामीन को गिरफ्तान ना करें। इस राजनैतिक उठा-पठक के बीच मालदीव के लोग सड़कों पर उतर आए हैं और राष्ट्रपति अब्दुल यामीन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इस मालदीव संकट (Maldives Crisis) की वजह से लोगों को काफि दिक्ततों का सामना करना पड़।
क्या है Maldives Crisis की वजह
बता दें कि अब्दुल यामीन साल 2013 में चुनाव जीतकर मालदीव के राष्ट्रपति चुने गए थे। हालांकि यह चुनाव भी विवादों में रहा था। इसके बाद से अब्दुल यामीन अपने सभी विरोधियों को जेल में डालते आ रहे हैं और एक तरह से अपने खिलाफ उठने वाली हर आवाज को दबाते आ रहे हैं। यही वजह है कि अब मालदीव के सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के खिलाफ जाने की हिम्मत की है। हालांकि न्यायपालिका को भी राष्ट्रपति अब्दुल यामीन की तरफ से लगातार धमकियां दी जा रही हैं।
मालदीव में राजनैतिक उठा-पटक का पुराना है इतिहास
Maldives Crisis कोई नया नहीं है। इससे पहले भी मालदीव इस तरह के राजनैतिक संकटों से जूझ चुका है। बता दें कि राजशाही खत्म होने के बाद अब्दुल गय्यूम साल 1978 में मालदीव के दूसरे लोकतांत्रिक राष्ट्रपति चुने गए। इसके बाद 30 सालों तक अब्दुल गय्यूम ने मालदीव पर एक तानाशाह की तरह राज किया। साल 2008 में अब्दुल गय्यूम के विरोधी और मानवाधिकार कार्यकर्ता मोहम्मद नशीद राष्ट्रपति चुने गए। लेकिन साल 2013 में पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल गय्यूम के चचेरे भाई अब्दुल यामीन ने मोहम्मद नशीद के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर उन्हें इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया और खुद राष्ट्रपति बन गए। इसके बाद से ही मोहम्मद नशीद लंदन में निर्वासित जीवन बिता रहे हैं।
भारत के लिए क्या है खतरा ?
उल्लेखनीय है कि मालदीव पारंपरिक रुप से भारत के करीब रहा है। भारत ने एक बार मालदीव में तख्तापलट की कोशिशों को भी नाकाम किया था, जिस कारण मालदीव की अब्दुल गय्यूम सरकार भारत समर्थक मानी जाती थी। अब्दुल गय्यूम के बाद मोहम्मद नशीद का रुख भी भारत समर्थक ही रहा। लेकिन साल 2013 में मौजूदा राष्ट्रपति अब्दुल यामीन के सत्ता में आने के बाद से स्थिति बदल गई और मालदीव में भारत का दबदबा कम हो गया।
अब्दुल यामीन ने भारत को किनारे रखकर चीन की सरकार से अपने संबंध मजबूत करने पर जोर दिया। उसी का नतीजा है कि आज मालदीव में भारत, चीन के मुकाबले काफी पिछड़ चुका है। चीन ने भी मालदीव के इस भरोसे का पूरा फायदा उठाया है और मालदीव को अपने कर्ज के जाल में फंसा लिया है। मालदीव के कुल कर्ज का 70 प्रतिशत सिर्फ चीन का हिस्सा है। ऐसे में खुद ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि मालदीव किस तरह से अब्दुल यामीन के कारण चीन के जाल में फंस चुका है।
चीन के फायदे की बात करें तो चीन, अपनी स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स योजना के तहत हिंद महासागर में भारत को घेरने की कोशिश कर रहा है। चीन की इस योजना में श्रीलंका और मालदीव अहम देश हैं। चीन के मालदीव में बढ़ते दबदबे के साथ ही इस आइलैंड देश में सऊदी अरब भी अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। उल्लेखनीय है कि मालदीव ने अपने एक पूरे टापू को सऊदी अरब को 99 साल के लिए लीज पर देने की योजना बनायी है, जिस पर जल्द ही अमल किया जा सकता है। ऐसे में अगर सऊदी अरब मालदीव में अपने पैर जमाने में सफल हो गया तो संभव है कि मालदीव में भी वहाबी विचारधारा को बढ़ावा मिलेगा और कट्टरपंथ का प्रसार होगा। जिससे मालदीव में भारत को और भी ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
बहरहाल मालदीव और भारत के पुराने बेहतर संबंधों की खातिर ही मालदीव के सुप्रीम कोर्ट ने भारत से उसके आंतरिक मामलों में दखल देने की अपील की है। हालांकि अभी तक भारत की ओर से इस संबंध में कोई अधिकारिक बयान नहीं आया है। माना जा रहा है कि भारत और दुनिया के अन्य देश मालदीव मसले पर अपनी बारीक नजर बनाए हुए हैं। अब देखने वाली बात होगी कि मालदीव के इस अहम राजनैतिक संकट में भारत सरकार क्या रुख लेती है ?