अब पाकिस्तान की शरण में आज़ाद घूम रहा आतंक का आका मौलाना मसूद अज़हर नहीं बचेगा। अब चीन का पाखंड भी मसूद का रक्षा कवच नहीं बन सकेगा। इसके लिए दुनिया की महाशक्तियों ने अपनी कवायद तेज कर दी है। मसूद पर कसते शिकंजे के पीछे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का करिश्मा काम कर रहा है। यह मोदी की विदेश नीति और उनके विदेश भ्रमण पर सवाल उठाने वालों के मुँह पर तमाचा है कि आज अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटन पुलवामा आतंकी हमले के बाद लगातार दूसरी बार इस कोशिश में जुट गए हैं कि चीनी वीटो की कोई काट निकाल कर मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित कराया जाए।
उल्लेखनीय है कि 14 फरवरी को हुए पुलवामा आतंकी हमले के बाद अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटन ने ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (UNSC) में मसूद के खिलाफ प्रस्ताव लाने की पहल की थी, लेकिन चीन फिर एक बार मसूद के बचाव में आया।
अब फिर एक बार ये तीनों देश मसूद कौ वैश्विक आतंकी घोषित करने के अपने प्रस्ताव के ड्राफ्ट को आगे बढ़ाने में जुट गए हैं। ये प्रस्ताव यूएनएससी के सभी 15 सदस्यों को सौंपा गया है और तीनों देश मिल कर सहमति बनाने की कोशिश कर रहे हैं। यदि यह सहमति बन जाती है, तो मसूद पर यात्रा प्रतिबंध, सम्पत्ति कुर्की जैसे कई कार्रवाई का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा।
अब सवाल यहाँ यह उठता है कि आखिर अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटन भारत के गुनहगार को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित करवाने की भारत की मांग के साथ यूँ डट कर क्यों खड़े हैं ? तो इसका एक पंक्ति में जवाब है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सशक्त विदेश नीति और लगातार विदेश भ्रमण के जरिए विश्व के अनेक छोटे-बड़े देशों के साथ द्विपक्षीय ही नहीं, बल्कि व्यक्ति मजबूत व्यक्तिगत-निजी संबंध स्थापित करना। अक्सर राजनीतिक विरोधी मोदी के विदेश भ्रमण पर सवाल उठाते हैं, परंतु आज विश्व में भारत की जो मजबूत स्थिति है, उसके पीछे मोदी की विदेश यात्राएँ और विभिन्न देशों तथा उनके नेताओं के साथ सुदृढ़ रिश्ता कायम करने की अवधारणा है।
अब आपको बताते हैं कि अब चीन किस तरह मसूद को नहीं बचा जाएगा। चीन यूएनएससी का स्थायी सदस्य है। इसीलिए उसके पास वीटो पावर है। इसी के चलते चीन बार-बार मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करने के प्रस्ताव को खारिज करवा देता है। वह चार बार ऐसा कर चुका है, लेकिन यूएनएससी के कुछ नियम ऐसे भी हैं, जिसके मुताबिक यदि यूएनएससी की समिति के स्थायी सदस्यों के अलावा अन्य अस्थायी सदस्य किसी मुद्दे पर सहमत हो जाएँ, तो फिर प्रस्ताव पास कराया जा सकता है। ऐसे में किसी एक सदस्य का वीटो पावर निष्प्रभावी हो जाएगा। अमेरिका, ब्रिटन और फ्रांस मिल कर यही सहमति बनाने की कवायद कर रहे हैं और यदि इस प्रकार की सहमति बन जाती है, तो फिर चीन की सभी चालाकियाँ ध्वस्त हो जाएँगी।
इस बीच अमेरिका ने चीन को कड़ी फटकार लगाई है। अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने एक ट्वीट कर लिखा, ‘एक तरफ चीन अपने देश में मुस्लिमों को प्रताड़ित कर रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ एक इस्लामिक आतंकी संगठन की संयुक्त राष्ट्र में रक्षा कर रहा है।’ पॉम्पियो का इशारा जैश ए मोहम्मद और आतंकवादी मसूद अज़हर की तरफ था।