आजादी के 7 दशक गुजरने के बाद भी हम Right to Education, “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ”, भ्रूण हत्या पर रोक, लड़कियों के साथ समानता जैसे सामाजिक मुद्दों पर हम काफी पीछे हैं। इन मुद्दों पर हमारा समाज आज भी काफी पीछे है। ऐसे में Yuva Press आपको एक ऐसी महिला की कहानी बताने जा रहा है जिसने शिक्षा खासकर महिला शिक्षा की दिशा में इतना बेहतरीन काम किया है जो हम युवाओं के लिए मिसाल है।
Tulasi Munda को 2001 में मिला पद्मश्री अवार्ड
ओडिशा की तुलसी मुंडा पिछले 6 दशकों से महिला शिक्षा की दिशा में बेमिसाल काम कर रही हैं। देर से ही सही सरकार की नजर इन पर पड़ी और 2001 में भारत सरकार ने इन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया। तुलसी मुंडा अपनी बदौलत 17 स्कूल चला रही हैं और अब तक 20 हजार बच्चों को शिक्षित कर समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का काम किया है। तुलसी मुंडा ने समाज सेवा में अपनी पूरी जिंदगी गुजार दी। इस मिशन के खातिर इन्होंने शादी भी नहीं की।
आज भी मानसिक गुलामी है- Tulasi Munda
तुलसी मुंडा का कहना है कि आजादी तो हमें 1947 में मिल गई थी लेकिन आज भी हम मानसिक रूप से गुलाम हैं। आज शिक्षित होने का मतलब है अच्छी नौकरी पाना। लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि नौकरी करने वाले पढ़े-लिखे गुलाम की तरह होते हैं। शिक्षित युवा शिक्षा का इस्तेमाल खेती और रोजगार देने के लिए नहीं करते हैं। ये हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है।
अशिक्षा सभी समस्याओं का जड़
तुलसी मुंडा का जन्म 15 जुलाई 1947 को ओडिशा के सबसे पिछड़े आदिवासी इलाके में हुआ। वह पढ़ना चाहती थीं लेकिन उस जमाने में लड़कियों को शिक्षित करने का सवाल भी पैदा नहीं होता था। लेकिन उन्होंने फैसला कर लिया कि मुझे किसी भी हाल में शिक्षित होना है। विपरित परिस्थिती के बावजूद 12 साल की उम्र में उन्होंने पत्थर तोड़कर जो कमाई होती थी उस कमाई से पढ़ना और पढ़ाना शुरू किया। उनका मानना है कि गरीबी, बेरोजगारी, नशाखोरी, अंधविश्वास की सबसे बड़ी वजह अशिक्षा है। अगर समाज को इन चीजों से बचाना है तो एकमात्र जरिया है कि लोगों को शिक्षित किया जाए।
समाज सेवा के लिए शादी भी नहीं की
परिवार बोझ ना बने इसलिए उन्होंने शादी नहीं की। उस जमाने में शादी नहीं करने का फैसला करना बहुत कठिन था। उनका एकमात्र मकसद था लोगों को शिक्षा के प्रति जागरूक करना ताकि उनकी जिंदगी में सुधार हो सके। अपने मकसद को पूरा करने के लिए उन्होंने अपनी जिंदगी लगा दी। जब कभी उनसे पूछा जाता है कि आपको मोटिवेशन कहां से मिलता है और अब तक का सफर कैसा रहा ? जवाब देने से पहले वह सोच में पड़ जाती हैं और फिर कहती हैं-जो कुछ हुआ वह अच्छा है लेकिन मैं हमेशा उन कामों पर फोकस करती हूं जो काम अधूरे हैं। आज से 35 साल पहले उन्होंने एक पेड़ के नीचे स्कूल की शुरुआत की थी और आज वह 17 स्कूल चला रही हैं जिसमें हजारों बच्चें पढ़ते हैं। तुलसी मुंडा “आदिवासी विकास समिति” के नाम से अपना संस्था चलाती हैं जिसका एकमात्र मकसद है बेहतर समाज का निर्माण करना। यही वजह है कि 2001 में इन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया।