* वायुसेना के एकमात्र परमवीर चक्र विजेता
* IAF ने 48वें बलिदान दिवस पर किया स्मरण
आलेख : कन्हैया कोष्टी
अहमदाबाद 14 दिसंबर, 2019 (युवाPRESS)। भारतीय सेना की कमाऊ रेजिमेंट के मेजर सोमनाथ शर्मा से लेकर भारतीय सेना की ही जम्मू-कश्मीर राइफल्स के कैप्टन विक्रम बत्रा तक कुल 21 जवानों को सेना के सर्वोच्च शौर्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया है, परंतु विशिष्ट और उल्लेखनीय बात यह है कि इन 21 जवानों में 20 जवान भारतीय थल सेना (INDIAN ARMY) के हैं, जबकि एकमात्र निर्मलजीत सिंह सेखों ऐसे परमवीर चक्र विजेता हैं, जो भारतीय वायुसेना (INDIAN AIR FORCE) अर्थात् IAF के थे। स्क्वॉड्रन 18 के फ्लाइंग ऑफिसर सेखों परमवीर चक्र सम्मान पाने वाले एकमात्र वायुसैनिक हैं। परमवीर चक्र विजेताओं में भारतीय नौसेना (INDIAN NAVY) का कोई जवान नहीं है। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि अंतत: सेखों ने ऐसा क्या साहसिक कार्य किया था कि सरकार ने उन्हें सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र (मरणोपरांत) से सम्मानित किया ? इतना ही नहीं, एक परमवीर चक्र विजेता होने के पश्चात् भी यह हीरो गुमनाम क्यों और कैसे हो गया ?
निर्मलजीत सिंह सेखों का आज यानी 14 दिसंबर, 2019 को 48वाँ बलिदान दिवस है। यद्यपि भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971 में भारत ने 16 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान को आत्म-समर्पण के लिए विवश कर भव्य विजय प्राप्त की थी, परंतु सेखों दो दिन पहले 14 दिसंबर, 1971 को राष्ट्र व श्रीनगर एयरबेस की रक्षा करते हुए शहीद हो चुके थे। हमारा देश 1971 के बाद से हर वर्ष 16 दिसंबर के दिन भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971 के उस विजय दिवस को शौर्य के साथ याद करता है, परंतु देश में बहुत कम लोग हैं, जिन्हें निर्मलजीत सिंह सेखों के बारे में पता है, जो विजय के दो दिन पहले ही शहीद हुए थे। यद्यपि भारतीय वायुसेना ने ट्वीट कर उन्हें याद किया है। सेखों का बलिदान भले ही आज इतिहास के पन्नों पर सिमट कर रह गया हो, परंतु भारतीय वायुसेना ने ट्वीट कर अपने जाँबाज़ फ्लाइंग ऑफिसर को स्मरण किया और उन्हें श्रद्धांजलि भी दी, जिन्होंने भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971 में जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर एयरबेस की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहूति दी थी। सेखों के बलिदान का मुख्य कारण भारतीय वायुसेना के पास विमानों की कम संख्या थी, जबकि पाकिस्तानी वायुसेना ने बड़ी संख्या में विमानों के साथ श्रीनगर एयरबेस पर हमला किया था।
पिता से मिली विरासत को आगे बढ़ाया

निर्मलजीत सिंह सेखों का जन्म पंजाब के लुधियाना जिले के इस्वाल दाखा गाँव में 17 जुलाई, 1943 को हुआ था। पिता तारालोचन पहले से ही IAF में फ्लाइंट लेफ्टिनेंट थे। ऐसे में सेखों को सेना, साहस और शूरवीरता जैसी विशेषताएँ विरासत में मिलना स्वाभाविक थीं। सेखों ने बचपन में ही पिता की तरह भारतीय वायुसेना में शामिल होने का निश्चय कर लिया था। स्कूली शिक्षा पूरी करते ही उन्होंने अपना सपना साकार किया और 4 जून, 1967 को सेखों भारतीय वायुसेना में पायलट के रूप में नियुक्त किए गए। सेखों को अभी IAF में शामिल हुए अभी 4 वर्ष ही हुए थे कि 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध की दुंदुभि बज गई। यह युद्ध कई मोर्चों पर लड़ा जा रहा था। इसी दौरान पाकिस्तानी वायुसेना ने भारत के एयरफोर्स कैम्पों पर आक्रमण करने की योजना बनाई, जिसके तहत अमृतसर, पठानकोट और श्रीनगर जैसे एयरफोर्स स्टेशनों पर हमला किया जाना था। निर्मलजीत सिंह सेखों उस समय श्रीनगर में तैनात थे और भारतीय वायुसेना की 18वीं स्क्वॉड्रन का नेतृत्व कर रहे थे।
14 दिसंबर : जब सेखों ने जान की बाज़ी लगा दी

14 दिसंबर, 1971 की सुबह पाकिस्तानी वायुसेना ने अपनी योजना के तहत 6 एफ-86 सैबर जेट को भारत के श्रीनगर एयरफोर्स कैम्प को निशाना बनाने के लिए पेशावर से रवाना किया। पाकिस्तानी विंग कमांडर चंगेज़़ी अपने फ्लाइट लेफ्टिनेंट दोतानी, अंद्राबी, मीर, बेग और युसुफ़ज़ई के साथ श्रीनगर की ओर बढ़ रहे थे। कोहरे का फायदा उठाते हुए पाकिस्तानी विमान भारतीय सीमा में घुस गए। चूँकि पाकिस्तानी सेना के सैबर विमान थे, इसलिए भारतीय वायुसेना को इसकी भनक नहीं लग सकी, क्योंकि श्रीनगर में IAF के पास कोई रडार नहीं था। यद्यपि सूत्रों से पता चलते ही सेखों, उनके सीनियर साथी गुम्मन सभी जवानों ने मोर्चा संभाल लिया। सेखों को फाइटर प्लेन उड़ाने का प्रशिक्षण गुम्मन ने ही दिया था। सेखों व गुम्मन ने एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) से फ्लाइटर प्लेन उड़ाने की ज़िम्मेदारी मांगी, परंतु रेडियो फ्रिक्वेंसी सही न होने के कारण एटीसी संपर्क न हो सका। अब सेखों और गुम्मन असमंजस में पड़ गए और दोनों दो जोड़ी बमों के साथ फाइटर प्लेन को रनवे पर लेकर निकल गए। सेखों ने जैसे ही उड़ान भरी, तो उन्होंने देखा कि उनके पीछे पाकिस्तानी विमान उड़ रहे हैं। इसी समय चंगेज़ी ने श्रीनगर एयरबेस पर हमला करने का आदेश दे दिया। उस समय के एयरक्राफ्ट में हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलें नहीं थीं। इसीलिए सेखों पाकिस्तानी सेना पर हमला नहीं कर पा रहे थे। इसके पश्चात् भी उन्होंने पाकिस्तान के दो विमानों को ध्वस्त किया, परंतु पाकिस्तानी वायुसेना की ओर से इतनी बड़ी संख्या में विमानों से आक्रमण किया गया कि सेखों को अपने प्राणों की आहूति देनी पड़ी। सेखों का विमान जम्मू-कश्मीर के बडगाम में ध्वस्त हो गया और सेखों शहीद हो गए। सेखों की इस वीरता को जहाँ भारत ने मरणोपरांत परमवीर चक्र प्रदान कर सम्मानित किया, वहीं पाकिस्तानी वायुसेना के सेवानिवृत्त एयर-कोमोडोर कैसर तुफ़ैल ने भी अपनी पुस्तक ग्रेट एयर बैटल्स ऑफ पाकिस्तान में सेखों की वीरता को सलाम किया। सेखों ने मात्र 48 वर्ष की आयु में देश के लिए बलिदान दे दिया। कुछ महीने पहले ही उनका विवाह हुआ था।