विश्लेषण : कन्हैया कोष्टी
केन्द्र में जब से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार सत्ता में आई, तब से आतंकवादियों की शामत आ गई है। पिछले पाँच वर्षों में मोदी सरकार ने कश्मीर घाटी को आतंक से मुक्त करने के लिए जो प्रचंड प्रहार किए, उसका परिणाम यह हुआ कि आज कश्मीर घाटी फिर से स्वर्ग बनने की ओर अग्रसर है। ऐसा हम नहीं कह रहे, अपितु आँकड़े बताते हैं कि कश्मीर में मोदी की आतंक विरोधी आक्रामक नीति ने किस तरह आतंकवादियों और उनके आकाओं की कमर तोड़ कर रख दी है। मारक और प्रचंड प्रहार के चलते अब आतंकियों के हौसले पस्त होते जा रहे हैं और आम कश्मीरी भी राहत और सुकून की साँस लेने लगा है।
आतंक पर सबसे मुखर होकर बोलने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने न केवल शब्दों से, अपितु यथार्थ के धरातल पर भी करारे प्रहार किए। मोदी सरकार के प्रचंड प्रहार के चलते पिछले पाँच वर्षों में कश्मीर घाटी में 957 आतंकवादी को नर्क पहुँचा दिया गया। इस करारे प्रहार की चपेट में इन आतंकियों के समर्थकों का आना भी स्वाभाविक था, जो कहने को तो आम कश्मीरी नागरिक थे, परंतु भारत, सरकार, सेना, अन्य सुरक्षा बलों और जम्मू-कश्मीर पुलिस के साथ नहीं थे। ऐसे गुमराह कश्मीरियों पर रोना रोने वालों की कमी नहीं है, परंतु हम इन गुमरा कश्मीरियों के बारे में यही कहेंगे कि उन्हें उनके कुकर्मों की सजा मिली। अकेले वर्ष 2018 में तो 266 आतंकी मारे गए और ऐसा 10 वर्षों में पहली बार हुआ।
सीधी कमांडरों पर चोट, आतंकियों का मनोबल टूटा
ऐसा नहीं है कि मोदी सरकार ने कश्मीर घाटी में केवल छोटे-मोटे आतंकियों पर प्रहार किए, बल्कि इस प्रचंड प्रहार की सफलता को इस बात से आँका जा सकता है कि मारे गए 957 आतंकियों में आतंकवादी संगठनों के 15 से अधिक टॉप कमांडर शामिल थे, जो लगातार कश्मीर में आतंकवादी हमले कर और करवा रहे थे। आकाओं को मौत के घाट उतार कर मोदी सरकार ने आतंकियों के मनोबल पर भी करार प्रहार किया। मोदी की आतंक विरोधी आक्रामक नीति के चलते 2014 से ही आतंकियों के बुरे दिन शुरू हो गए थे, परंतु आतंकियों को सबसे बड़ा झटका लगा 2016 में जब हिज़बुल मुजाहिद्दीन का कमांडर कुख्यात आतंकवादी बुरहान मुज़फ्फर वानी ढेर कर दिया गया। इसके बाद तो अबु दुजाना, बशीर लश्करी, सबज़ार अहमद बट, ज़ुनैद मट्टू, सजाद अहमद गिलकर, आशिक हुसैन बट्ट, अबू हाफिज़ बट्ट, तारिक पंडित, यासीन इट्टू उर्फ गज़नवी, अबू इस्माइल, ओसामा जांगवी, ओवैद, मुफ़्ती विकास, अली भाई, शाहजहाँ, नूर मोहम्मद, अबू माज़, आज़ाद मलिक, मुदस्सिर अहमद खान, सज्जाद खान, कामरान, तारिक मौलवी सहित अनगिनत नाम हैं, जो हिज़बुल मुजाहिद्दीन, लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के टॉप कमांडर थे। इन कमांडरों की कमर टूटने से जहाँ एक तरफ कश्मीर में नए आतंकियों की भर्ती में कमी आई, वहीं आकाओं की मौत से आतंकी खुद आतंकित हुए और उनका मनोबल टूटा।
सत्ता में आते ही मोदी ने शुरू किया सफाया
नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में सत्ता संभालते ही कश्मीर घाटी को आतंकमुक्त करने का अभियान छेड़ा। गृह मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार कश्मीर घाटी में वर्ष 2014 में 110, वर्ष 2015 में 108 और वर्ष 2016 में 150 आतंकवादियों को सुरक्षा बलों ने मौत के घाट उतार दिया। इस तरह सत्ता संभालते ही मोदी ने ढाई साल के भीतर ही कश्मीर में कुल 368 आतंकियों का सफाया किया, जिसमें कई कमांडर शामिल थे।
वानी की मौत बाद उग्र हुई आतंक विरोधी लड़ाई
जुलाई-2016 में मोदी सरकार और सेना के आतंकवाद विरोधी अभियान की चपेट में जब सबसे बड़ा चेहरा बुरहान वानी आ गया, तो कश्मीर में हालात बिगड़ने लगे। वानी की मौत से झल्लाए आतंक के आकाओं ने जहाँ एक तरफ गुमराह कश्मीरियों के हाथों में पथ्थर थमा दिए, तो मोदी सरकार ने सेना, सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईबी और जम्मू-कश्मीर पुलिस के जरिए कश्मीर में जनवरी-2017 में ऑपरेशन ऑलाउट शुरू किया, जिसने कश्मीर घाटी को आतंकमुक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और निभा रहा है।
ऑपरेशन ऑलआउट@589
ऑपरेशन ऑलआउट के बाद कश्मीर घाटी में आतंकियों पर मोदी सरकार आफत बन कर टूट पड़ी। सुरक्षा बलों ने घाटी में ढूँढ-ढूँढ कर आतंकियों को घेरा, निशाना बनाया और ढेर किया। गृह मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार ऑपरेशन ऑलआउट में वर्ष 2017 में 213, वर्ष 2018 में 266 और वर्ष 2019 में अब तक 110 यानी कुल 589 आतंकियों को ढेर किया गया है। इनमें फरवरी-2019 में हुए पुलवामा आतंकी हमले के षड्यंत्रकारी 41 आतंकवादी भी शामिल हैं।