* मोदी ने इमरान को ट्रम्प से खिलवाई डाँट
* भूटान जाकर जिनपिंग की दु:खती रग दबाई
* UAE-बहरीन यात्रा से इमरान को लगाएँगे मिर्ची
* विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी जुटे अभियान में
रिपोर्ट : कन्हैया कोष्टी
अहमदाबाद 20 अगस्त, 2019 (युवाPRESS)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की घातक विदेश नीति और कूटनीति ने संकट की हर घड़ी में भारत की सहायता की है। आतंकवाद पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने से लेकर सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक, अभिनंदन वर्तमान की पाकिस्तान से सकुशल स्वदेश वापसी, आतंकवादी मौलाना मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित कराने से लेकर जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने तक के तमाम साहसिक कार्यों में पूरा विश्व भारत और मोदी सरकार के साथ यदि खड़ा नज़र आता है, तो इसके पीछे मोदी की कूटनीति का ही कमाल है।
अक्सर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विदेश दौरों को लेकर विरोधी सवाल उठाते हैं, परंतु देश की जनता और मोदी विरोधियों को मोदी के विदेश दौरों की अहमियत उपरोक्त तमाम घटनाक्रमों के बाद समझ में आ गई। मोदी विरोधी अच्छी तरह समझ गए और जनता को भी इस बात पर गर्व हुआ कि जिस भारत के साथ कभी दुनिया के बड़े-बड़े देश खड़े रहने से कतराते थे, वही देश आज भारत के लिए दुनिया के अलग-अलग मंचों पर लड़ाई का नेतृत्व करते हैं। मोदी की विदेश नीति, कूटनीति और विशेषरूप से वैश्विक नेताओं के साथ पर्नसल केमिस्ट्री के कारण ही दुनिया में भारत का डंका बजा और एक चमत्कार की तरह अमेरिका-रूस सहित सभी शक्तिशाली देश भारत की बात को गंभीरता से लेते हैं और उसके साथ खड़े रहते हैं।
मोदी की विदेश यात्राएँ उनके दूसरे कार्यकाल में भी अवार गति से जारी हैं और वर्तमान परिस्थितियों में तो भारत की विदेश नीति तथा मोदी की कूटनीति टॉप गियर में है, क्योंकि जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद पड़ोसी पाकिस्तान लगातार भारत विरोधी दुष्प्रचार कर रहा है, तो उसका परम् मित्र चीन बिना सोचे-समझे अपने नादान दोस्त की मदद कर रहा है। ऐसे में मोदी ने पाकिस्तान और चीन के विरुद्ध कूटनीतिक मोर्चा खोल दिया है।
मोदी ने ट्रम्प को किया फोन, इमरान को नकल पर पड़ी डाँट

हाल ही में चीन को मिर्ची लगाने वाली भूटान यात्रा से लौटे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार रात अचानक अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को फोन किया। मोदी ने ट्रम्प के दिमाग में यह बात अच्छी तरह बैठा दी कि जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाना भारत का आंतरिक मामला है। मोदी ने पाकिस्तान का नाम लिए बगैर कहा कि कुछ लोग भड़काऊ वक्तव्य देकर क्षेत्र की शांति को भंग करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। यद्यपि मोदी ने भारत-अमेरिका द्विपक्षीय संबंधों पर भी चर्चा की, परंतु चर्चा का केन्द्रबिंदु कश्मीर पर भारत का पक्ष मजबूती से रखना ही रहा। उधर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान को जैसे ही पता चला कि मोदी ने ट्रम्प को फोन किया, तो इमरान ने भी मोदी की नकल करते हुए ट्रम्प को फोन लगा दिया। इमरान सोच रहे थे कि वे ट्रम्प को कुछ समझाएँगे, परंतु उल्टे ट्रम्प ने इमरान को नसीहत दे डाली कि वे क्षेत्र में शांति बनाए रखें, भड़काऊ वक्तव्यों से बचें और कोई भी आक्रमक रवैया अपनाने से परहेज करे।
थिंफू से छिड़का जिनपिंग के जले पर नमक

इससे पहले जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के साहसिक फ़ैसले के बाद पहली बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भूटान यात्रा पर गए। भूटान छोटा, परंतु सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण देश है। मोदी अच्छी तरह जानते थे कि भूटान में भारत की मौजूदगी चीन को पसंद नहीं आएगी। मोदी ने भूटान की राजधानी थिंफू से चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के जले पर नमक छिड़का। जले पर नमक इसलिए, क्योंकि दो दिन पहले ही वीटो पावर से लैस चीन को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (UNSC) में पाकिस्तान के कहने पर कश्मीर पर अनौपचारिक बैठक बुलवाए जाने के बावजूद जोरदार तमाचा पड़ा था। ऐसे में मोदी ने उस भूटान की यात्रा की, जहाँ चीन विस्तारवादी नीति के तहत अपनी पैठ जमाने की कोशिश कर रहा है। मोदी ने भूटान दौरे से चीनी विस्तारवाद को कड़ा झटका दिया।
अब मुस्लिम देशों से करेंगे पाकिस्तान पर वार

पाकिस्तान स्वयं को इस्लाम धर्म का रक्षक और मुसलमानों का मसीहा समझता है, परंतु मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद दुनिया के अधिकांश इस्लामिक देश पाकिस्तान की अनदेखी करने लगे हैं। इन इस्लामिक देशों के सामने मोदी की मारक कूटनीति ने पाकिस्तान की पोल खोल के रख दी। भूटान यात्रा के बाद मोदी एक साथ दो मुस्लिम देशों संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और बहरीन की यात्रा पर जा रहे हैं। मोदी इन दोनों देशों के साथ द्विपक्षीय वार्ता करने के अलावा GROUP OF SEVEN यानी G7 देशों की बैठक में भाग लेंगे। जी7 समूह के सदस्य देश कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन (UK) और अमेरिका (US) हैं। मोदी जी7 सम्मेलन में विशेष अतिथि के रूप में हिस्सा लेने वाले हैं और काफी संभावना है कि इस दौरान वे वीटो पावर से लैस फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका के राष्ट्राध्यक्षों से मुलाकात करेंगे। यूएई दौरे की सबसे विशेष बात यह है कि यहाँ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को यूएई का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ऑर्डर ऑफ ज़ायद से सम्मानित किया जाएगा। यूएई भारत के दृष्टिकोण से इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह इस्लामिक देशों के सबसे बड़े संगठन ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन (OIC) का महत्वपूर्ण सदस्य है। यह वही आईओसी है, जिसका पाकिस्तान भी सदस्य है और जिसने अपने पिछले सम्मेलन में भारत की तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को विशेष अतिथि के रूप में बुलाया था, जबकि भारत ओआईसी का सदस्य नहीं है। पाकिस्तान ने सुषमा के आमंत्रित किए जाने का विरोध करते हुए ओआईसी सम्मेलन का बहिष्कार किया था। मोदी यूएई और बहरीन के बाद फ्रांस जाएँगे, जहाँ राष्ट्रपति इमेन्युल मैक्रो से मुलाकात होगी। इस मुलाकात में राफेल की आपूर्ति, रक्षा सौदों, आणविक ऊर्जा संयंत्र से जुड़े मुद्दों के अलावा कश्मीर पर भी मोदी भारत का रुख स्पष्ट करेंगे। यूएनएससी में पाकिस्तान के कहने पर चीन ने जब कश्मीर पर बंद दरवाजे में अनौपचारिक बैठक करवाई, तब फ्रांस ने भी भारत का ही साथ दिया था।
एस. जयशंकर भी समर्थन जुटाने में जुटे

एक तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विदेश यात्राओं पर जाकर पाकिस्तानी प्रोपगैंडा की पोल खोल रहे हैं, तो दूसरी तरफ विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी इस अभियान में जुटे हुए हैं। धारा 370 हटाए जाने के बाद जयशंकर ने अपना पहला विदेश दौरा चीन का किया था। अब जयशंकर नेपाल, बांग्लादेश और रूस की यात्रा पर जाएँगे। जयशंकर के राजधानी काठमांडू पहुँचने से पहले ही नेपाली विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ग्वायाली ने कश्मीर पर महत्वपूर्ण वक्तव्य दिया कि यह विशुद्ध रूप से भारत-पाकिस्तान के बीच का द्विपक्षीय मामला है। इससे पहले श्रीलंका, अफग़ानिस्तान और भूटान पहले ही भारत का समर्थन कर चुके हैं। जयशंकर नेपाल और बांग्लादेश के बाद 27 अगस्त को रूस की राजधानी मॉस्को पहुँचेंगे। रूस को कुछ समझाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वह तो दशकों से भारत का मित्र रहा है। रूस हर बार भारत की मित्रता की कसौटी पर खरा उतरा है और हाल ही में यूएनएससी की बंद कमरे में हुई अनौपचारिक बैठक में भी रूस ने कश्मीर पर भारत का ही समर्थन किया था। यूएनएससी के पाँच में से चार स्थायी सदस्यों रूस, ब्रिटेन, अमेरिका और फ्रांस के भारत का समर्थन करने से पाँचवें स्थायी सदस्य चीन की बोलती बंद हो गई थी।