अहमदाबाद, 17 जून 2019 (युवाप्रेस डॉट कॉम)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब से दोबारा पीएम पद सँभाला है तब से ही ऐसा लग रहा है, जैसे उन्होंने अपना पूरा ध्यान सरकारी महकमों की सफाई पर ही लगाया हुआ है। अब यह सुनने में आ रहा है कि पीएम मोदी ने सरकारी कामों में होने वाली देरी और देरी के कारण बढ़ने वाले खर्च का हल खोज लिया है। अब मोदी सरकार पूरी तरह से प्रोफेशनल कॉर्पोरेट अंदाज़ में सरकारी काम करवाएगी। इससे काम शुरू होने और खत्म होने में देरी भी नहीं होगी और खर्च बढ़ने से जो सरकारी पैसा बरबाद होता है, वह भी नहीं होगा, बल्कि अब सरकारी काम निर्धारित समय से भी पहले समाप्त करने का लक्ष्य रखा जाएगा।
परंपरागत सरकारी तौर-तरीके हो जाएँगे विदा

पीएम मोदी ने सरकारी कामों को निर्धारित समय से भी पहले निपटाने के लिये पूरी तरह से निजी कंपनियों की तरह काम करने का फॉर्मूला तैयार किया है और काम करने के परंपरागत सरकारी तौर-तरीकों को खत्म करने की योजना बनाई है।
सभी विभागों के परिसर में ही प्रोजेक्ट मैनेजमेंट की तालीम
इस फॉर्मूले का पहला पायदान यह है कि सीनियर सेकेण्डरी स्तर पर प्रोजेक्ट मैनेजमेंट को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाएगा और स्नातक स्तर पर इसका पूरा कोर्स शुरू होगा। इसका डिप्लोमा प्रोग्राम भी प्रारंभ किया जा रहा है। पीजी कोर्स के लिये यूजीसी तथा एआईसीटीई से मशविरा लिया गया है। इसमें जो प्रोजेक्ट मैनेजमेंट के कोर्स होंगे वो अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के आधार पर तैयार किये जाएँगे।
अभी सब सरकारी और निजी विभागों में प्रोजेक्ट मैनेजमेंट योजना लागू की जा रही है, इसके अंतर्गत रेफ्रेशर कोर्स शुरू किये जाएँगे। इस कोर्स के दायरे में सभी सरकारी विभागों, बोर्ड और निगमों को लाया जाएगा। ऐसी व्यवस्था की जाएगी कि सभी विभागों को उनके परिसर में ही प्रोजेक्ट मैनेजमेंट का प्रशिक्षण दिया जा सके। यदि किसी प्रोजेक्ट को जल्दी शुरू करना है तो उसके लिये अलग से मापदंड तैयार किये जाएँगे।
अमेरिका-ब्रिटेन की तर्ज पर होंगे सरकारी काम
इस काम में क्वालिटी कंट्रोल ऑफ इंडिया की मदद ली जाएगी। नेशनल प्रोजेक्ट-प्रोजेक्ट मैनेजमेंट पॉलिसी फ्रेमवर्क के तहत यह सभी परियोजनाएँ पूर्ण की जाएँगी। सरकार का मानना है कि उसका फॉर्मूला सरकारी विभागों के कामकाज के तरीकों को पूरी तरह से बदल देगा। इसके लिये मोदी सरकार अमेरिका, ब्रिटेन, संयुक्त अरब अमीरात और चीन जैसे देशों के कामकाज के तरीकों का अनुभव लेकर आगे बढ़ेगी। सरकारी योजनाओं में प्रोजेक्ट का टेंडर जारी होने के बाद से उसके पूरे होने तक सभी प्रक्रियाओं में निजी कंपनियों के तरीके उपयोग किये जाएँगे।
सरकार रेलवे, निर्माण, आईटी, सड़क परिवहन, पावर, कोल सेक्टर, हेल्थ, शहरी विकास, संचार, माइंस, सिविल एविएशन, डिफेंस तथा हैवी इंडस्ट्रीज़ आदि के क्षेत्रों में रियल टाइम कम्युनिकेशन तथा रियल टाइम डेटा मैनेजमेंट जैसे मुद्दों का पालन करके किसी भी काम को तय समय से पहले और निर्धारित राशि से कम खर्च में पूरा करेगी। नीति आयोग की शनिवार को हुई पाँचवीं बैठक में यह प्रोजेक्ट रिपोर्ट सभी राज्यों को सौंपी गई है। पीएम मोदी की ओर से इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी योजनाओं के तय समय में पूरा नहीं होने के पीछे एक बड़ा कारण उसके प्रबंधन और क्रियान्वयन के तौर-तरीके हैं, जिनमें लंबे समय से कोई बदलाव नहीं हुआ है और इन परंपरागत तौर-तरीकों के कारण ही सरकारी काम तय समय पर पूरे नहीं होते हैं और समय बढ़ने के साथ उनका खर्च बढ़ने से सरकारी पैसा व्यर्थ होता है। आज भी अधिकांश सरकारी विभाग पुराने ढर्रे से ही चल रहे हैं, चाहे वह निर्माण क्षेत्र हो या आईटी प्रोजेक्ट।
ऐसा है सरकारी काम का पुराना ढर्रा
देश में निर्माण क्षेत्र से जुड़े प्रोजेक्ट पूरे होने में सबसे अधिक समय लगता है। जैसे कि पहले काम की रिपोर्ट तैयार होती है, जिसमें तय खर्च (अधिकतम सीमा) में काम पूरा होने की बात की जाती है। इसके बाद डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट यानी डीपीआर बनती है। इन सब कामों में इतना अधिक फाइल वर्क होता है कि प्रोजेक्ट शुरू होने में ही दो-तीन साल की देरी हो जाती है। आर्किटेक्ट की नियुक्ति के बाद जो बिड डॉक्युमेंट तैयार होता है, उस पर इंजीनियर अपनी राय देता है। वह कई बार रिपोर्ट को गलत भी ठहरा देता है। जब ठेकेदार को फाइनल रिपोर्ट मिलती है तब काम शुरू होता है। काम के बीच में कई बार जाँच तो कई बार पेमेंट इशू बाधा बन जाता है, इससे काम तय समय में पूरे नहीं होते हैं। फिर उसमें पावर इशू, पब्लिक प्रॉपर्टी है या प्राइवेट प्रॉपर्टी है, इस तरह के मामले भी बाधक बनकर सामने आ जाते हैं। ऐसे मामलों में कई बार कोर्ट केस हो जाते हैं और कोर्ट से स्टे ले लिया जाता है। इन सबके कारण प्रोजेक्ट पूरा होने की तारीख आगे बढ़ा देती है और खर्च भी कई गुना बढ़ जाता है।
मिनिस्ट्री ऑफ स्टेटिस्टिक्स एण्ड प्रोग्राम इम्प्लीमेंटेशन (MOSPI)की दिसंबर 2018 में जारी रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल-2014 में शुरू हुए 727 कामों में से 282 सरकारी प्रोजेक्ट देरी से पूरे हुए। इस विलंब का कारण प्रोजेक्ट प्रबंधन की कमियाँ थी। परिणाम यह हुआ कि सरकार को भारी आर्थिक चपत लगी।