…जिन्होंने बापू-अटल को एक साथ याद कर सिद्ध किया, ‘दल से ऊपर देश’
…जिनके हाथों अनायास ही कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों के नेताओं को दी गई श्रद्धांजलि !
…जिन्होंने राष्ट्र के लिए बलिदान देने वाले माँ भारती के वीर सपूतों को किया प्रणाम
…जिन्होंने भावी प्रधानमंत्रियों के लिए एक नई परम्परा का सूत्रपात किया
विश्लेषण : कन्हैया कोष्टी
अहमदाबाद, 30 मई, 2019। नरेन्द्र मोदी और कीर्तिमान एक-दूसरे का पर्याय बन चुके हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री से लेकर भारत के प्रधानमंत्री पद तक की अपनी इस 17 वर्ष 7 महीने 23 दिन की यात्रा में नरेन्द्र मोदी ने कई रिकॉर्ड अपने नाम किए हैं, तो कई नई परम्पराओं का सूत्रपात किया है। इसी श्रृंखला में नरेन्द्र मोदी ने गुरुवार को दूसरी बार प्रधानमंत्री के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ लेने से पहले कई नई परम्पराओं का सूत्रपात किया। ये ऐसी परम्पराएँ हैं, जो भारत के भावी प्रधानमंत्रियों के लिए भी मार्गदर्शक सिद्ध होंगी।
यह तो सभी जानते हैं कि नरेन्द्र मोदी लोकसभा चुनाव 2019 में मिली प्रचंड विजय के बाद आज यानी 30 मई, 2019 गुरुवार सायं 7.00 बजे दूसरी बार प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करने वाले हैं, परंतु उन्होंने शपथ ग्रहण से 12 घण्टे पहले यानी सुबह 7.00 बजे से अपने दल भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी-BJP) के स्वयं सहित 303 सांसदों के साथ जो मैराथन कार्यक्रम किए, वह अपने आपमें अभूतपूर्व हैं।
नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करने से पहले जहाँ एक ओर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को उनके समाधि स्थल राजघाट जाकर श्रद्धांजलि दी, वहीं पूर्व प्रधानमंत्री, राष्ट्र पुरुष और भाजपा के भीष्म दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी को समाधि स्थल सदैव अटल पर जाकर श्रद्धांजलि दी। ये दोनों ही नेता राष्ट्र के महापुरुष हैं। ऐसे में मोदी का शपथ से पहले राष्ट्र के पिता मोहनदास करमचंद गांधी यानी महात्मा गांधी को श्रद्धा-सुमन अर्पित करना अस्वाभाविक नहीं था, तो अपने दल भाजपा की स्थापना करने वाले तथा देश को छह वर्षों तक सफल शासन देने वाले राष्ट्रनायक अटलजी का स्मरण करना अस्वाभाविक नहीं था, परंतु ऐसा करते हुए नरेन्द्र मोदी अनायास ही वह कार्य कर गए, जो देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर देश के पंद्रहवें प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने नहीं किया था।
वास्तव में मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह से पहले जिन दो महापुरुषों को नमन किया, उनमें से एक महात्मा गांधी जहाँ वर्तमान राजनीति में भाजपा के सबसे कट्टर प्रतिस्पर्धी दल कांग्रेस के नेता थे, वहीं अटलजी भाजपा के नेता थे। इस तरह मोदी देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री बन गए, जिन्होंने अपने दल के अलावा कांग्रेस पार्टी का हिस्सा रहे महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देकर ‘स्वयं से ऊपर दल’ और ‘दल से ऊपर देश’ सिद्ध किया। स्मरण रहे कि हमारा इरादा यहाँ महात्मा गांधी को कांग्रेस पार्टी का नेता होने तक सीमित करने का नहीं है। हमारा उद्देश्य केवल मोदी के हाथों अनायास ही आरंभ हुई एक अच्छी परम्परा से अवगत कराना है।

इतना ही नहीं, विविधताओं से भरे भारत को यदि कोई वाद एकसूत्र में पिरोता है, तो वह है राष्ट्रवाद। जब-जब भारत में राष्ट्रवाद मुखर हुआ, तब-तब देश ने नगर-प्रांत-जाति-धर्म जैसी सीमाओं और दीवारों को तोड़ कर एक सुर में राष्ट्र का साथ दिया। फिर चाहे भारत-पाकिस्तान के बीच हुए 1947, 1965, 1971 के युद्ध हों या 1999 का कारगिल युद्ध हो या फिर 1962 में हुआ भारत-चीन युद्ध हो। इन सभी कालों में भारत में राष्ट्रवाद की अखंड ज्योत प्रज्वलित रही। इसके अलावा भी युद्ध में परास्त पाकिस्तान की शह पर जब-जब भारत में आतंकवादी आक्रमण हुए, तब-तब देश के लोगों ने पाकिस्तान पर कड़ी कार्रवाई करने की आवाज़ सभी दीवारें तोड़ कर उठाई। यद्यपि यह बात और है कि नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले आतंकवादी आक्रमणों के विरुद्ध देश की पाकिस्तान पर कार्रवाई करने की आवाज़ किसी सरकार ने नहीं सुनी, परंतु मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पठानकोट, उरी और पुलवामा आतंकी आक्रमण हुए और मोदी ने न केवल राष्ट्रवाद की प्रतिशोध की पुकार सुनी, अपितु सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक कर उस पुकार को सार्थक भी कर दिखाया। कुल मिला कर कहने का तात्पर्य यही है कि 1947 से लेकर 2019 तक हुए कई 5 युद्धों और उसके बाद हुए कई आतंकवादी आक्रमणों में भारत की तीनों सेनाओं और अर्धसैनिक बलों के सैकड़ों वीर सपूतों को प्राणों का बलिदान देना पड़ा, परंतु स्वतंत्रता के 71 वर्षों तक किसी भी सरकार ने अपने वीर सपूतों के लिए कोई राष्ट्रीय युद्ध स्मारक नहीं बनाया, परंतु मोदी ने न केवल यह युद्ध स्मारक बनाया, अपितु आज शपथ से पहले उन सैकड़ों को सपूतों को प्रणाम कर राष्ट्र के प्रति अपनी कृतज्ञता का संदेश भी दिया।

इससे पहले भी नरेन्द्र मोदी ने 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने से पहले लोकतंत्र के मंदिर संसद के सेंट्रल हॉल में आयोजित राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग-NDA) के संसदीय दल की बैठक में भाग लेने के लिए प्रवेश करने से पूर्व संसद की दहलीज पर माथा टेक कर एक नई परम्परा प्रारंभ की थी, वहीं 2019 भी नरेन्द्र मोदी ने संसद के सेंट्रल हॉल में आयोजित एनडीए संसदीय दल की बैठक में नेता निर्वाचित होने के बाद संबोधन से पहले वहाँ रखे संविधान के आगे माथा टेका।