बरसाना के राधा रानी मंदिर में सादगी के साथ राधा अष्टमी का उत्सव मनाया गया। कोरोना के चलते श्रद्धालुओं के आगमन पर पहले प्रतिबंध लगा हुआ है। इस दौरान मंदिर के सेवायतों ने विधि विधान और परंपरागत तरीके से पूजा अर्चना की।
मान्यता है कि भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी दिन बरसाने की लाडली श्रीराधा जी का जन्म हुआ था। पूरे बरसाने में इस दिन उत्सव का माहौल होता है। यहां श्रीराधा रानी की कृपा हमेशा बरसती रहती है। श्रीराधा नाम की महिमा अपरंपार है। मान्यता है कि जिस किसी के मुख से राधा नाम का जाप होता है भगवान श्रीकृष्ण उसके पीछे-पीछे चल देते हैं।
श्रीराधा जी को बरसाना के लोग वृषभानु दुलारी भी कहते हैं। मान्यता है कि इसी दिन श्री राधा रानी बरसाने में प्रकट हुई थी । श्री राधा जी के जन्म की सबसे लोकप्रिय कथा यह है कि वृषभानु जी को एक सुंदर शीतल सरोवर में सुनहरे कमल में एक दिव्य कन्या लेटी हुई मिली। वे उसे घर ले आए लेकिन वह बालिका आंखें खोलने को राजी ही नहीं थी। पिता और माता ने समझा कि वे देख नहीं सकतीं लेकिन प्रभु लीला ऐसी थी कि राधा सबसे पहले श्री कृष्ण को ही देखना चाहती थीं। अत: जब बाल रूप में श्री कृष्ण जी से उनका सामना हुआ तो उन्होंने आंखें खोल दीं। बरसाने में पहाड़ी पर बना श्रीराधाजी का प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर लाल और पीले पत्थर का बना हुआ है। श्री राधा-कृष्ण को समर्पित इस भव्य मंदिर का निर्माण राजा वीरसिंह ने 1675 ई. में कराया था। श्रीराधा किशोरी के उपासकों का यह अतिप्रिय तीर्थ है। राधाष्टमी के दिन मंदिर को फूलों और फलों से सजाया जाता है। श्रीराधाजी को छप्पन व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। इस भोग को सबसे पहले मोर को खिलाया जाता है। मोर को श्रीराधा-कृष्ण का स्वरूप माना जाता है। बाकी प्रसाद श्रद्धालुओं में बांट दिया जाता है। श्रीराधा-कृष्ण जहां पहली बार मिले थे, उसे संकेत तीर्थ कहा जाता है। यह तीर्थ नंदगांव और बरसाने के बीच स्थित है।
राधाष्टमी के मौके पर विशेष भोग लगाने से आपको कृपा प्राप्त होती है। शहद, मिश्री सहित खीर बनाकर देवी राधा और कृष्ण को भोग लगाएं।