अहमदाबाद, 18 जुलाई 2019 (युवाPRESS)। मोदी सरकार प्रत्येक कामकाम के लिये विज्ञान और तकनीक के इस्तेमाल पर जोर दे रही है। ऐसे झारखंड की राजधानी रांची के एक युवा इंजीनियर ने अपनी कमाल की इंजीनियरिंग से ऐसा आविष्कार किया है, जिससे बाढ़ और अग्नि दुर्घटनाओं के समय रेस्क्यू का काम आसान हो जाएगा।
रांची के इस रैंचो ने किया कमाल

दरअसल रांची के रहने वाले सोनू गढ़ेवार ओडिशा के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में 3 साल से पढ़ रहा है। इस दौरान सोनू ने अपनी सूझ-बूझ से ऐसे कमाल किये हैं, जिससे हर कोई उससे प्रभावित है। सोनू के पिता एक बिज़नेसमैन हैं और माता हाउस वाइफ हैं। सोनू की तरह ही उसकी बहन भी इंजीनियरिंग की ही छात्रा है। सोनू का झुकाव बचपन से ही टेक्नोलॉजी की तरफ था। उसे किताबी ज्ञान से ज्यादा प्रैक्टिकल नॉलेज प्राप्त करने में गहरी रुचि थी। सोनू के अनुसार कोई मशीन कैसे चलती है, उसके बैकइंड पर किये गये कामों और उसे बनानेवाले दिमाग को जानने में सोनू का दिमाग खूब चलता था। जब सोनू कक्षा-11 में पढ़ता था, तब उसे साइबर सिक्युरिटी के बारे में जानने का क्रेज था। उसी समय से उसने बड़ी-बड़ी कंपनियों के लिये बग-हंटिंग करना शुरू कर दिया था।
क्या होती है बग-हंटिंग ?

दरअसल हैकरों की ओर से साइबर सिक्युरिटी के लिये किये जाने वाले निरीक्षण को बग-हंटिंग कहते हैं। इसमें हैकर फेसबुक, गूगल, यू-ट्यूब जैसी बड़ी-बड़ी कंपनियों द्वारा बनाई गई एप्लीकेशन तथा वेबसाइट में मौजूद सिक्युरिटी सम्बंधित खामियों को वीडियो प्रूफ के साथ उस कंपनी को सौंपते हैं और उन्हें बताते हैं कि आपकी एप्लीकेशन में यह इनसिक्युरिटी मौजूद है। बदले में कंपनी की ओर से उन्हें रिवॉर्ड दिया जाता है।
सोनू ने बनाया शक्तिशाली ड्रोन
रांची के रेंचो यानी सोनू ने अब एक शक्तिशाली ड्रोन बनाया है। सोनू के अनुसार जब वह इंजीनियरिंग के दूसरे साल में थे तो उसने अपने ड्रोन पर रिसर्च करने के बारे में घर पर बात की। पिता ने भी फाइनांसियली मदद की। इसके बाद सोनू ट्रेडिशनल ड्रोन की रूपरेखा बदलने के काम में जुट गया और उसने ऐसे ड्रोन का निर्माण कर डाला जिसे एक शहर में बैठे-बैठे दूसरे शहर से उड़ाया जा सकता है। सोनू के ड्रोन में सोचने की भी अच्छी खासी क्षमता है। उसमें एक बार पायथन भाषा में लिखे कोड को कोडिंग करना है और ड्रोन में पेस्ट करने के बाद रिमोट कंट्रोल से उसे ऑपरेट करने वाले पायलट को आम ड्रोन की तरह लगातार उसकी उड़ान के पीछे लगे रहने की जरूरत नहीं होती है और यह ड्रोन दिये गये काम की आर्टिफिशियली इंटेलिजंसी द्वारा अपना काम बखूबी करके वापस आ जाता है।
यह भी पढ़ें : मिलिए JNU के एक ऐसे ‘कन्हैया’ से, जिस पर आपको लज्जा नहीं आएगी, बल्कि गर्व होगा !
सोनू ने ड्रोन की कनेक्टिविटी पर भी काम किया है। सामान्य ड्रोन रेडियो फ्रिक्वेंसी या टेलीमेट्री पर काम करते हैं। रेडियो फ्रिक्वेंसी ड्रोन के उड़ने की क्षमता 3 से 4 किलोमीटर होती है, जबकि टेलीमेट्री से बने ड्रोन की क्षमता अधिक से अधिक 10 किलोमीटर होती है। सोनू के ड्रोन को दिल्ली में बैठा शख्स रांची से उड़ा सकता है। सोनू का यह ड्रोन सेना के लिये रामबाण साबित हो सकता है। यह ड्रोन यदि किसी सीमा पर सर्विलांस दे और कोई घुसपैठिया आतंकी इसकी ज़द में आ गया तो बिना किसी इंसानी मदद के यह ड्रोन लगातार उसका पीछा करेगा और उससे जुड़ी सूचनाएँ अपने हेड क्वार्टर में उपलब्ध कराएगा।
स्वार्म टेक्नोलॉजी से काम करता है सोनू का ड्रोन
सोनू ने इस ड्रोन में एक यूनिक फीचर डाला है, जिसे SWARM टेक्नोलॉजी कहा जाता है। यह कृषि क्षेत्र के लिये तो फायदेमंद है ही, साथ ही रेस्क्यू ऑपरेशन में भी मदद करती है। इस फीचर से यह ड्रोन बहुत कम समय में सटीक रेस्क्यू करता है। इस फीचर में 3 से 4 ड्रोन एक साथ बराबर समय में एक-दूसरे के साथ सामंजस्य से काम क बाँटकर रेस्क्यू में लग जाते हैं, केवल एक ड्रोन में रेस्क्यू वाले क्षेत्र को चिह्नित करना होता है।
अभी सोनू ऐसे ड्रोन पर काम कर रहा है, जो एक उड़ान में 300 किलोमीटर तक जाने की क्षमता रखता है, वह भी 120 से 130 किलोमीटर प्रति घण्टे की रफ्तार से। यह ड्रोन फिलहाल 4 से 6 किलोग्राम तक पेलोड उठाकर एक से दूसरे स्थान पर पहुँच सकता है। सोनू अपनी टीम के साथ मिलकर सरकार के साथ कुछ ऐसे प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा है, जो भविष्य में काफी उपयोगी सिद्ध होने वाले हैं। इसके अलावा सोनू स्टार्टअप के लिये भी बहुत कुछ करने का इच्छुक है ताकि स्टूडेंट्स को रिसर्च में परेशानियां कम हों।