विश्लेषण : कन्हैया कोष्टी
अहमदाबाद, 11 जुलाई, 2019। शीर्षक पढ़ कर आश्चर्य हुआ ? देश के सौ करोड़ से अधिक हिन्दुओं की आस्था के प्रतीक भगवान श्री राम का भव्य मंदिर उनके जन्म स्थल अयोध्या में बने, इसकी शताब्दियों से प्रतीक्षा कर रहे हैं। लोगों ने यद्यपि लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 दोनों में ही नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी-BJP) को पूर्ण बहुमत दिया, परंतु यह बहुमत राम मंदिर के मुद्दे पर नहीं दिया गया। लोगों ने विकास और आशा पर मुहर लगाई। इसके बावजूद चूँकि देश में सक्रिय 2,416 दलों में से एकमात्र भाजपा ही वर्षों से राम मंदिर निर्माण का संकल्प व्यक्त करती आई है, इसलिए 100 करोड़ हिन्दुओं के मन में कहीं न कहीं आशा का यह दीप भी प्रज्ज्वलित है कि यदि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण होगा, तो वह भाजपा के शासनकाल में ही होगा।
होगा ? अरे, आरंभ हो चुका है ! इस बात की भनक देश के तथाकथित धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवियों और यहाँ तक कि पैनी दृष्टि रखने वाले बहुतायत मीडिया तक को नहीं लग सकी। वास्तव में अयोध्या में भगवान श्री राम के भव्य मंदिर के निर्माण की नींव का पहला पत्थर रख दिया गया है। इसी कारण राम मंदिर विवाद के इतिहास में 11 जुलाई, 2019 गुरुवार का दिन एक ऐतिहासिक दिन बन गया है। आज जो हुआ है, वह सिलसिला अब भव्य राम मंदिर के निर्माण के साथ ही थमेगा।
अब आप सोच रहे होंगे कि आज भला ऐसा क्या हो गया ? क्या मोदी सरकार कोई अध्यादेश लाने जा रही है ? क्या सुप्रीम कोर्ट (SC) ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए हरी झंडी दिखा दी है ? जी नहीं, ऐसा तो कुछ नहीं हुआ, परंतु आज यानी 11 जुलाई, 2019 गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या राम मंदिर जन्म भूमि विवाद पर जो कुछ हुआ, उससे स्पष्ट है कि एक तरफ जहाँ हिन्दू पक्ष देश के सबसे बड़े न्यायालय को यह समझाने में सफल हो गया कि राम मंदिर विवाद में मध्यस्थता की बात मात्र एक नाटक से अधिक कुछ नहीं है, क्योंकि इससे कोई परिणाम हासिल नहीं होने वाला और यह समय की बर्बादी है।

इस कार्य को करने की पहल हिन्दू पक्षकार गोपाल सिंह विशारद ने की। उनकी ही याचिका पर गुरुवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने नया आदेश जारी करते हुए तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति को अपनी रिपोर्ट 15 अगस्त नहीं, अपितु 18 जुलाई तक अंतरिम स्थिति रिपोर्ट और 25 जुलाई तक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया। गोपाल सिंह के वकील के. परासरन की धारदार दलीलों के बाद SC ने जो रुख अपनाया, उससे स्पष्ट है कि हिन्दू पक्षकार अयोध्या मामले पर जल्द से जल्द फ़ैसला हो, इस दिशा में आगे बढ़ने में सफल रहे हैं, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता समिति से विस्तृत रिपोर्ट मिलने के बाद आवश्यक लगा, तो 25 जुलाई के बाद अयोध्या मामले की दैनिक सुनवाई करने पर विचार करने की बात भी कही। सुप्रीम कोर्ट का यह रुख हिन्दू पक्षकारों और करोड़ों हिन्दुओं की भावना की बहुत बड़ी जीत है। लोकसभा चुनाव 2019 से पहले भी मंदिर निर्माण के पक्षधर लोग निरंतर यह मांग कर रहे थे कि अयोध्या मसले की सुनवाई दैनिक आधार पर हो और शीघ्रातिशीघ्र निर्णय सुनाया जाए। यद्यपि उस समय सुप्रीम कोर्ट ने कई कारणों से सुनवाई को टाल दिया और मध्यस्थता समिति बना दी गई, परंतु अब मध्यस्थता समिति को भी मोहलत दे दिए जाने से स्पष्ट है कि बहुत जल्द सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की सुनवाई में जबर्दश्त तेजी आ सकती है और संभव है कि हर रोज सुनवाई भी हो।

उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट को इलाहाबाद उच्च न्यायालय (HC) के उस निर्णय की समीक्षा करनी है, जिसमें उसने स्वीकार किया था कि अयोध्या में जिस जगह बाबरी मस्जिद का ढाँचा था, वहाँ कभी राम मंदिर था। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने 30 सितम्बर, 2010 को अपने फ़ैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ विवादास्पद भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बाँट दिया जाए, जिसमें राम लला जहाँ विराजमान है, वह हिस्सा हिन्दू महासभा को दे दिया जाए। दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को और तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दे दिया जाए। हाई कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व विभाग (ASI) की रिपोर्ट को भी आधार मानते हुए इस बात पर मुहर लगाई थी कि बाबरी मस्जिद 450 वर्ष पूर्व मौजूद राम मंदिर को तोड़ कर बनाई गई। हालाँकि इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को लगभग सभी पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और 9 वर्षों से यथास्थिति बरकरार है।

अब आपका प्रश्न यह होगा कि अंतत: आज का यानी 11 जुलाई, 2019 का सुप्रीम कोर्ट का रुख किस तरह राम मंदिर और हिन्दू पक्षकार के पक्ष में रहा ? वास्तविकता यह है कि केन्द्र में 2014 से नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में उस भाजपा की सरकार है, जो 1980 में अपनी स्थापना से नहीं, अपितु पूर्ववर्ती जनसंघ के जमाने से राम मंदिर के निर्माण के पक्ष में रही है। 2014 में सबका साथ-सबका विकास का नारा देने वाले मोदी ने उस नारे को सार्थक किया। इस नारे में ‘सब’ अर्थात् सभी भारतीय समाहित हैं। 2019 में दोबारा प्रचंड बहुमत मिला, तो प्रधानमंत्री मोदी को यह अनुभूति हुई कि इस प्रचंड बहुमत में अभी भी ‘सब’ पूरी तरह शामिल नहीं है। इसीलिए उन्होंने सबका साथ-सबका विकास-सबका विश्वास का नया नारा दिया। ऐसे में कोई यह अपेक्षा करे कि मोदी सीधे राम मंदिर बना देंगे, तो यह अतिश्योक्ति होगा। मोदी सबका विश्वास हासिल करके ही राम मंदिर का मार्ग प्रशस्त करेंगे। वे यहाँ कट्टरता या कटुता से नहीं, अपितु पटुता से काम लेंगे। पीएम मोदी एक तरफ इस विश्वास के साथ सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि फ़ैसला राम मंदिर निर्माण के पक्ष में ही आएगा, तो दूसरी तरफ मोदी यह भी कह चुके हैं कि उनकी सरकार मंदिर निर्माण के लिए कृतसंकल्प है और सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला यदि सरकार के संकल्प के विपरीत आता है, तो उस समय जो कदम आवश्यक होंगे, वो उठाए जाएँगे। मोदी का संकेत स्पष्ट है कि वे लोकसभा चुनाव 2024 से पूर्व राम मंदिर निर्माण का भाजपा के संकल्प पत्र का संकल्प पूरा करने के लिए अध्यादेश भी लाने से नहीं हिचकिचाएँगे और वह भी अल्पसंख्यकों को विश्वास में लेकर। यह सब होगा और वह भी ‘सब’के विश्वास के साथ