उत्तर प्रदेश: सोमवार की रोज भारत सरकार तथा Archeology Dipartment ने कोर्ट में अपना जवाब दाखिल करते हुए कहा कि ताजमल नहीं है तेजोमहल और ऐसा कोई साक्ष्य भी नहीं है। अगले सुनवाई के लिए अपर सिविल जज सीनियर डिवीजन अभिशेक सिन्हा ने 26 फरवरी स्थाई की है।
हालांकि उत्तर प्रदेश के राजधानी लखनउ के अधिवत्का हरीशंकर जैन समेत कई अन्य अधिवत्काओं ने वरिश्ठ अधिवत्का राजेश कुलश्रेश्ठ के माध्यम इस मामले का आरोप अदालत में 8 अप्रैल 2015 को दाखिल किया था। इस मामले में भारत सरकार, गृह मंत्रालय, पुरातत्व विभाग तथा केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय को उत्तरदायी बनाया गया है। उन्होनें दावा करते हुए कहा कि पूर्व में यह ताजमहल तेजोमहालय मंदिर के नाम से था। यहां लार्ड शिव का भव्य मंदिर था। जिसका नाम तेजोमहालय था। भारत सरकार और पुरातत्व विभाग ने उत्तरदायी पत्र दाखिल कर दिया है। सोमवार की रोज भारत सरकार तथा Archeology Dipartment के अधिवक्ता विवेक शर्मा और अंजना शर्मा ने जवाब दाखिल किया। इस जवाब में उन्होंने यह भी कहा कि ताजमहल परिसर में फोटोग्राफी की प्रमिशन नहीं है, यह कानूनी अवैध है। परिसर के बंद हिस्से में नहीं जा सकते हैं। वादीपक्ष द्वारा जो भी बंद भाग में फूलपत्ती, कलश आदि की उपस्थिति का जो अर्थ लगाया है वह कालपनिक है। इस का कोई साक्ष्य, दस्तावेज दाखिल नहीं किया गया है। जबकि मामले से जुडे़ दस्तावेज सरकार पहले ही दाखिल कर चुकी है। वहीं वादीपक्ष की ओर से अधिवक्ता राजेश कुलश्रेश्ठ ने समस्या पैदा कर दी है। मामले की सुनवाई की तिथि अदालत ने 26 फरवरी स्थाई की है।
बेगम मुमताज की यादगार के लिए बनवाया था ताजमहल – Archeology Dipartment
उन्होंने अपने जवाब में यह भी कहा कि बादशह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में ताजमहल बनवाया था। इस संयोजन में कई जनादेश और कई नजीर भी है। यह ताजमहल भारत सरकार की संपत्ति है। हांलाकि पूर्व में Archeology Dipartment के डीजी ने ताजमहल को लेकर जरूरी दिशा निर्देष प्रचारित कर चुके है। इसी वजह से फोटोग्राफी इन भाग में प्रतिबंधित है। 6 जनवरी 2014 में दिए गए आदेश के अनुसार ताजमहल की गुम्बद तथा धरातल आदि संरक्षित क्षेत्र में किसी को जाने की इजाजत नहीं है।