विशेष टिप्पणी : कन्हैया कोष्टी
* सावधान ! यहीं रोकना होगा ‘केसीआर परम्परा’ को
* हर CM ऐसा दान करने लगा, तो हो जाएगा बंटाधार
अहमदाबाद, 23 जुलाई, 2019 (युवाPRESS)। जिस मिट्टी में हमने जन्म लिया, उसका ऋण उतारना हमारा कर्तव्य है। यह कर्तव्य परायणता हर व्यक्ति में होनी चाहिए। हमारे देश में तो मिट्टी का मोल चुकाने की कई परम्पराओं के दृष्टांत देखने को मिलते हैं। कई ऐसे लोग भी होते हैं, जो विदेश में जाकर धन कमाने के बावजूद अपने गाँव की मिट्टी का मोल चुकाने के लिए उदार हाथों से धन खर्च करते हैं। ऐसे लोग पौराणिक भारत के दानवीर कर्ण और आधुनिक भारत के दानवीर भामाशाह की उपाधि पाते हैं।
परंतु आज हम ऐसे दानवीर कर्ण या भामाशाह से मिलवाने जा रहे हैं, जिन्होंने अपने गाँव की मिट्टी का मोल चुकाने के लिए दो-पाँच लाख रुपए नहीं, अपितु पूरे 2000 करोड़ रुपए का दान किया है। अब ऐसे दानवीर की तुलना तो आप कर्ण और भामाशाह से ही करेंगे न ! करनी भी चाहिए। ऐसा व्यक्ति वास्तव में अपने निर्धन गाँव के निर्धन लोगों के लिए कर्ण या भामाशाह से कम नहीं है। यदि किसी गाँव का कोई बेटा अपने गाँव के निर्धन लोगों को 2000 करोड़ रुपए दान में दे, तो उस गाँव का हर व्यक्ति अपने इस बेटे के प्रति धन्यता की ही अनुभूति करेगा, परंतु क्या तेलंगाना के चिंतामडाका गाँव के लोगों को अपने राज्य के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव पर गर्व होगा ?
जी हाँ। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (KCR) ने अपने गाँव चिंतामडाका में रहने वाले 2000 परिवारों को 10-10 लाख रुपए देने की घोषणा की है। मेडक जिले के सिद्दीपेट मंडल स्थित चिंतामडाका गाँव के लोग 65 वर्ष पूर्व उनके ही गाँव में जन्मे सपूत के. चंद्रशेखर राव की इस घोषणा से गद्गद् हैं। केसीएआर ने अपने गाँव चिंतामडाका में आयोजित एक कार्यक्रम में घोषणा की, ‘मैंने चिंतामडाका गाँव में जन्म लिया है। मैं इस गाँव के लोगों का आभारी हूँ। मैं प्रति परिवार 10 लाख रुपए देने की घोषणा करता हूँ। इन पैसों से वे जो चाहें, वो ख़रीद लें। गाँव के लोग इन पैसों से अपने लिए ट्रैक्टर, खेत और खेती की मशीनें ख़रीद सकते हैं।’
क्या ख़ूब कर्ज चुकाया मिट्टी का !

यह तो हुई केसीआर की घोषणा की बात। जब कोई व्यक्ति दान देने बैठता है, तो उसे दान की पद्धति और दान का महत्व दोनों के बारे में भली-भाँति जानकारी होनी चाहिए। क्या के. चंद्रशेखर राव यह नहीं जानते कि अपने गाँव के लिए अपनी ओर से दिया जाने वाले दान की राशि भी अपनी ही होनी चाहिए ? केसीआर नि:संदेह चिंतामडाका गाँव में जन्मे और उन्होंने अपने गाँव के ऋण के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए 2000 परिवारों को 10-10 लाख रुपए यानी कुल लगभग 2000 करोड़ रुपए दान में देने की घोषणा की, परंतु आपको जान कर आश्चर्य होगा कि ये 2000 करोड़ रुपए वे अपनी जेब से दान नहीं करने वाले हैं ! केसीआर की घोषणा के अनुसार चिंतामडाका गाँव के लोगों को यह रकम तेलंगाना सरकार की ओर से दी जाएगी। अब आप ही बताइए, ये किस तरह की कृतज्ञता प्रकट की है केसीआर ने ? अपने गाँव के लोगों के समक्ष स्वयं को सपूत सिद्ध करने के लिए सरकारी कोष से खुली लूट नहीं है यह ? गाँव का ऋण ही उतारना है, तो अपनी जेब से उतारना चाहिए। केसीआर यह ऋण उतारना चाहते थे या कृतज्ञता प्रकट करना चाहते थे, तो अपने गाँव के विकास, उद्धार के लिए कोई निश्चित राशि आवंटित करते। उन्होंने अपने एक गाँव के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए सरकारी कोष को 2000 करोड़ रुपए का चूना लगा कर तेलंगाना की 3 करोड़ 96 लाख जनता की जेब पर डाका नहीं डाला ? यह कैसी कृतज्ञता है ?
लोकतंत्र के लिए घातक परम्परा !

लोकतंत्र में अक्सर हर नेता की किसी भी क्रिया का अंतिम लक्ष्य मत (VOTE) और उसके माध्यम से सत्ता पाना होता है। केसीआर ने भी यही चाल चली है। उन्होंने अपने गाँव की माटी का मोल चुकाने के नाम पर सरकारी ख़जाने से लूट-ख़सोट का जो रास्ता अपनाया है, उसका पूरे तेलंगाना में सकारात्मक राजनीतिक प्रभाव पड़ेगा। लोग केसीआर की प्रशंसा करेंगे, परंतु गहराई से विचार करें, तो क्या यह परम्परा निर्धन भारत और स्वस्थ लोकतंत्र के लिए घातक नहीं है ? देश में एक नहीं, 31 राज्य हैं, जहाँ मुख्यमंत्री कार्यरत् हैं। यदि शेष 30 राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी अपने-अपने पैतृक गाँवों यानी 30 गाँवों के हर परिवार को 10-10 लाख रुपए बाँट कर गाँव के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने की केसीआर परम्परा अपनाई, तो सरकारी ख़जाने को कितने ख़रबों रुपयों की चोट पड़ेगी ? इसमें भी हर पाँच वर्ष में मुख्यमंत्री बदलते रहते हैं। हर नया मुख्यमंत्री आकर केसीआर की तरह अपने गाँव के लिए सरकारी दानवीर बनने की परिपाटी पर चलेगा, तो देश का क्या होगा ? तेलंगाना ही नहीं, अपितु पूरे देश की जनता को इस तरह के धनाकर्षण और धन लोभ से बचना चाहिए। जनता को ऐसे नेताओं से सावधान रहना होगा, बल्कि हम तो यह चाहेंगे कि किसी जागृत नागरिक को केसीआर के इस निर्णय के विरुद्ध अदालत में जनहित याचिका दायर करनी चाहिए।