बेटियों के प्रति नजरिया बदलने की दिशा में राजस्थान के पिपलांत्री गांव के लोगों की तरफ से जो पहल की जा रही है वह सराहनीय है। राजस्थान के इस गांव की कहानी को डेनमार्क सरकार ने स्कूल सिलेबस में शामिल किया है। हाल में राजस्थान सरकार ने भी इसे 7वीं और 8वीं क्लास के सिलेबस में शामिल किया है। गांव के पूर्व सरपंच श्यामसुंदर पालीवाल का मानना है कि बेटियां प्रकृति की वरदान हैं। इसलिए जब कभी गांव में बेटी पैदा होती है तो गांव वाले (Tree plantation) 111 पेड़ लगाते हैं। गांव वाले और परिजन ना सिर्फ पेड़ लगाते हैं बल्कि उसकी देखभाल भी खुद की बेटी की तरह करते हैं।
लड़कियों को बराबर अवसर नहीं मिल पाते हैं
देश के ज्यादातर हिस्सों में बेटियों को आज भी बोझ समझा जाता है। ज्यादातर लोग बेटियों को इसलिए बोझ मानते हैं क्योंकि उनकी शादी में दहेज देना पड़ता है। यही वजह है कि उन्हें ना तो अच्छी शिक्षा मिल पाती है और ना ही लड़कों के बराबर अवसर मिलते हैं। अपने समाज में महिलाओं के खिलाफ अत्याचार की बड़ी वजह ये भी है।
बेटी के पैदा होने पर 111 पेड़ लगाए जाते हैं
राजसमंद जिले के पिपलांत्री गांव में जब बेटी पैदा होती है तो यहां जश्न मनाया जाता है। बेटियों के जन्म पर पेड़ लगाने (Tree plantation) की शुरुआत गांव के पूर्व सरपंच श्यामसुंदर पालीवाल ने की थी। उनकी जवान बेटी की अचानक मौत हो गई जिससे उनको गहरा सदमा पहुंचा। समाज में बेटियों की हालत देखकर उन्होंने अपने गांव के लोगों को जागरूक किया और कुछ कड़े नियम बनाए। अब गांव में जब बेटी पैदा होती है तो गांव वाले मिलकर उसके नाम पर कम से कम 111 पेड़ लगाने लगे। इसको लेकर एक समिति का भी गठन किया गया है। अगर कोई परिवार आर्थिक रूप से कमजोर है तो पंचायत की तरफ से 21 हजार की आर्थिक मदद भी दी जाती है। घर वाले को भी 10 हजार रुपए देने होते हैं जो आने वाले 18 सालों के लिए उसके नाम से बैंक में जमा कर दिए जाते हैं। माता-पिता को बकायदा शपथ दिलाई जाती है कि वे अपनी बेटी को बराबर का मौका देंगे। उसकी शिक्षा पूरी करवाएंगे और किसी भी सूरत में 18 साल से कम उम्र में उसकी शादी नहीं होगी।
3 लाख से ज्यादा पेड़ लगाए जा चुके हैं
इस मुहिम (Tree plantation) के तहत अब तक पिपलांत्री ग्राम पंचायत द्वारा 3 लाख से ज्यादा पेड़ लगाए जा चुके हैं। 25 लाख से ज्यादा एलोवेरा के पेड़ लगाए जा चुके हैं। कन्या विवाह, भ्रूण हत्या, महिलाओं पर अत्याचार लगाम में है। गांव की महिलाएं एलोवेरा से जूस, शैंपू, जेल समेत कई सामान बनाकर अपना रोजगार भी कर रही हैं। इस गांव की महिलाएं आज आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं। ग्राम पंचायत द्वारा अविश्वसनीय काम करने के चलते यूनियन बैंक ने बेटियों की शिक्षा के खातिर 60 लाख रुपए भी दिए हैं।
इस मुहिम से मरुधरा हरा-भरा हो रहा है
पिपलांत्री गांव आज सफल गांव का मॉडल बन चुका है। राजस्थान के करीब 10 हजार गांव इस मॉडल को अपना रहे हैं। बंजर दिखने वाला राजस्थान आज हरा भरा दिखने लगा है। इस मॉडल को समझने के लिए देश-विदेश के लोग आते हैं और बहुत कुछ सीख कर जाते हैं। आपको हैरानी होगी कि किसी के मरने से लेकर किसी मेहमान के आने पर भी गांववाले पेड़ लगाते हैं। इस गांव के लोग छोटी नौकरी के पलायन नहीं कर रहे हैं। भूजल स्तर काफी ऊपर आ चुका है। लुप्त हो रहे वन्यजीव वापस होने लगे हैं। श्यामसुंदर पालीवाल की एक पहल से आज राजस्थान बदल रहा है। श्यामसुंदर पालीवाल कहते हैं कि मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी की मेरी एक छोटी सी कोशिश का इतना बड़ा फायदा मिलेगा और यह एक मॉडल बन जाएगा। तमाम देशों के लोग आकर जब इस सफर पर डॉक्यूमेंट्री बनाने की बात करते हैं तो मुझे बहुत खुशी होती है।