गौतम बुद्ध का सत्संग चल रहा था। एक युवक ने बुद्ध से पूछा, ‘ध्यान करने बैठो तो मन नहीं लगता है।’ सत्संग में बैठे अन्य लोगों ने भी ये प्रश्न सुना। बुद्ध ने आंखें खोलीं और कहा, ‘फिर से बोलिए।’ उस युवक ने फिर से यही बात कही, ‘ध्यान करने बैठो तो मन नहीं लगता है।’ बुद्ध ने कहा, ‘एक बार और बोलिए।’ युवक ने दोबारा बात दोहरा दी। बुद्ध बोले, ‘अब मैं उत्तर देता हूं। मन के अभाव का नाम ध्यान है। मन का भोजन विचार हैं तो मन को उसका भोजन देना बंद कर दो। जब मन निष्क्रिय हो जाएगा तो ध्यान लग जाएगा।’
बुद्ध ने ठीक ऐसा ही उत्तर तीन बार दिया। तब लोगों ने बुद्ध से पूछा, ‘हम अक्सर देखते हैं कि जब भी कोई आपसे प्रश्न पूछता है तो आप उस व्यक्ति से तीन बार वही प्रश्न पूछते हैं। और फिर उसका उत्तर भी तीन बार देते हैं। ऐसा क्यों?’ बुद्ध ने कहा, ‘मेरा अनुभव है कि अधिकतर लोग सिर्फ पूछने के लिए ही प्रश्न पूछ लेते हैं। हमारा और खुद का समय नष्ट करते हैं। मैं तीन बार प्रश्न इसलिए सुनता हूं कि सामने वाले की गंभीरता मालूम हो जाए। पूछने वाले को भी अपने प्रश्न के मामले में जागृति हो जाए। मैं उत्तर भी तीन बार देता हूं, ताकि सामने वाला मेरी बात ठीक से समझ लें। तीन बार दोहराने से बात मन में ठीक से उतर जाती है।’
सीख
यहां बुद्ध कहना चाहते हैं कि अगर किसी से कोई प्रश्न पूछो तो उसके लिए गंभीर रहना चाहिए। केवल किसी की परीक्षा लेने के लिए प्रश्न न पूछें। प्रश्न ऐसा हो जो आपकी और दूसरों की शंका का समाधान करता हो। किसी को उत्तर देना हो तो ऐसे दें कि बात सामने वाले को अच्छी तरह समझ आ जाए। अगर बात बार-बार दोहरानी पड़े तो दोहराएं।