कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा। कश्मीरी हितों के तथाकथित रक्षकों को छोड़ कर कदाचित अधिकांश कश्मीरी और पूरा भारत यही चाहता है कि भारत का मस्तक जम्मू-कश्मीर पूरा का पूरा भारत का हो जाए। इसके लिए देश में ऐसी दृढ़ इच्छाशक्ति वाली सरकार लानी होगी, जो कश्मीर को वास्तव में भारत का अभिन्न अंग बनाए। कटा हुआ कश्मीर नहीं, पूरा कश्मीर भारत में ला सके। कश्मीर के मदताताओं से तो हम कोई आशा कर नहीं सकते, क्योंकि वे बेचारे ऐसे गुमराह करने वाले नेताओं के बीच जी रहे हैं, लेकिन शेष भारत के मतदाताओं को देश में ऐसी दृढ़ सरकार लाने का उत्तरदायित्व निभाना होगा, जो भारतीय सरकार, उसकी सेना, जम्मू-कश्मीर सरकार और उसकी पुलिस के संरक्षण में रह कर भी पाकिस्तान की भाषा बोलने वालों की अकल ठिकाने ला सके। ये ऐसे नेता हैं, जिन्हें दिन-रात चौकीदारी करने वाले हमारे जवानों की चिंता नहीं है। ये ऐसे नेता हैं, जिन्हें भारत के हर पग यानी कदम से पेट में दर्द होता है। सवाल यह उठता है कि ये नेता पाकिस्तान में रहते हैं या भारत में ?
हम जिन नेताओं की बात कर रहे हैं, वे हैं जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) के संस्थापक फारूक़ अब्दुल्ला, अध्यक्ष उमर अब्दुल्ला और पीपल्ड डेमोक्रैटिक पार्टी (PDP) की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती की। देश में जब लोकसभा चुनाव 2019 का प्रचार अभियान चल रहा है, तब ये तीनों नेता जम्मू-कश्मीर में अपनी जीत के लिए ऐसे-ऐसे बयान दे रहे हैं, जो देशद्रोह की मर्यादा को भी लांघ रहा है। भारत के हर कदम पर इन्हें तकलीफ़ होती है। आश्चर्य की बात यह है कि जम्मू-कश्मीर में ये दोनों पार्टियाँ यानी एनसी और पीडीपी एक-दूसरे के विरुद्ध चुनाव लड़ रही हैं और इसीलिए दोनों ही पार्टियों के नेता स्वयं को कश्मीरियों का अधिक हितैषी बनाने की कोशिश में पाकिस्तान की भाषा बोलने में भी गुरेज़ नहीं करते। इससे भी बड़ा आश्चर्य यह है कि एनसी के साथ तो देश की सबसे पुरानी और राष्ट्रवादी होने का दम भरने वाली कांग्रेस ने गठबंधन कर रखा है।
क्या जवानों की सुरक्षा नागरिकों की सुविधा से ऊपर है ?
पुलवामा आतंकी हमले में देश के केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF) के 40 जवान शहीद हो गए। उन कश्मीरियों की रक्षा के लिए, जो जवानों पर पत्थर फेंकते हैं। इस हमले के सबक लेते हुए यदि केन्द्र सरकार ने सीआरपीएफ काफिले की आवाजाही के दौरान जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग को आम नागरिकों के लिए प्रतिबंधित किया, तो इसमें क्या ग़लत किया। पुलवामा आतंकी हमले का मुख्य कारण यही तो था। यदि उस दिन भी वह रास्ता आम यातायात के लिए बंद होता, तो कोई आत्मघाती हमलावर हमला ही नहीं कर पाता। ऐसे में केन्द्र सरकार ने जवानों की सुरक्षा को देखते हुए यह निर्णय किया, परंतु फारूक़ अब्दुल्ला धरने पर बैठ गए और मोदी को गालियाँ देते हुए बोले, ‘हमें यह दिमाग में रखने को मजबूर किया जा रहा है कि इसमें हमारी कोई चूक नहीं थी। हम आज़ाद देश में रह रहे हैं या यह एक उपनिवेश है ? उन्होंने हमें कैद कर रखा है। इससे पहले कि कश्मीर में और ख़ून-खराबा हो, वे (मोदी सरकार) यह प्रतिबंध हटाए।’ सवाल यह उठता है कि आखिर फारूक़ को जवानों की सुरक्षा से बढ़ कर आम नागरिकों की चिंता क्यों है। जवान होंगे, तभी प्रत्येक कश्मीरी सुरक्षित होगा। क्या फारूक़ इतना भी नहीं जानते ? फारूक़ को देश की रक्षा मंत्री, देश की वायुसेना और यहाँ तक कि अमेरिकी ट्रम्प प्रशासन व पेंटागन से भी ज्यादा भरोसा अमेरिकी मैगज़ीन फॉरेन पॉलिसी पर क्यों है, जिसने एफ-16 पर भारत के दावे को ग़लत ठहराया।

धारा 370 के नाम पर महबूबा घायल क्यों ?
धारा 370 का नाम आते ही इन तथाकथित कश्मीर और कश्मीरी हितैषी नेताओं के पेट में दर्द उठता है। अमित शाह ने ये क्या कह दिया कि मोदी सरकार फिर से आई, तो धारा 370 हटा दी जाएगी, महबूबा आगबबूला हो गईं। उन्होंने यहाँ तक कह डाला कि यदि धारा 370 हटी, तो भारत कश्मीर खो देगा। अब महबूबा ज़रा ये बताएँ कि धारा 370 के रहते हुए उन्होंने कब देश की मुख्य धारा में जुड़ने की कोशिश की ?

उमर को चाहिए अलग राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री
उमर अब्दुल्ला तो एक कदम आगे हैं। उन्होंने तो यह तक कह डाला कि कश्मीर की स्वायत्तता की सुरक्षा के लिए देश से इतर कश्मीर के लिए अलग राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री होना चाहिए। फारूक़ और उमर की पार्टी एनसी से गठबंधन करने वाली कांग्रेस और उसके अध्यक्ष राहुल गांधी के पास उमर के इस बयान का है कोई जवाब ?