प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पाँच वर्षों के कार्यकाल में पहली बार भगवान राम की जन्म भूमि अयोध्या की धरती पर पग रखा। मोदी जिस भारतीय जनता पार्टी (भाजपा-BJP) के नेता हैं, उस पार्टी के हर चुनावी घोषणा पत्र में राम मंदिर बनाने का संकल्प होता है और भारत की यह एकमात्र पार्टी है, जिसने राम मंदिर को अपने घोषणा पत्र में जगह दी है। इतना सब कुछ होने के बावजूद मोदी एक तो पाँच वर्ष में पहली बार अयोध्या गए और उस पर उन्होंने रामलला के दर्शन भी नहीं किए। ऐसे में राजनीतिक विरोधियों का प्रश्न खड़े करना स्वाभाविक है, परंतु मोदी ने अंततः ऐसा क्यों किया ? वे रामलला के दरवाजे तक दस्तक देकर दर्शन किए बिना क्यों लौट आए ?
ये सारे प्रश्न केवल राजनीतिक विरोधियों के मन में ही नहीं, अपितु भारत में भगवान राम में आस्था रखने वाले और राम मंदिर बनने का सपना संजोए बैठे करोड़ों हिन्दुओं को मन में उठना स्वाभाविक है, परंतु इन प्रश्नों के उत्तर अयोध्या-अंबेडकरनगर की सीमा पर आयोजित चुनावी सभा में मोदी के दिए गए भाषण से अपने आप ही निकल आते हैं। मोदी ने अपनी अब तक की 85 से अधिक रैलियों में पहली बार अयोध्या में ही जय श्री राम के नारे लगवाए। मोदी ने अयोध्या में ही दीवाली और रामायण सर्किट का जिक्र किया। क्या ये इस बात के पर्याप्त संकेत नहीं हैं कि मोदी के मन में राम मंदिर की परिकल्पना तो 1990 में लालकृष्ण आडवाणी की ओर से निकाली गई राम रथयात्रा से ही बन चुकी है। इस रथयात्रा की बागडोर मोदी ही संभाल रहे थे। वे भला रामलला को कैसे भूल सकते हैं ? परंतु मोदी चुनावी सरगर्मी के बीच यदि रामलला के दर्शन करने नहीं गए, तो उसके पीछे कई निहितार्थ छिपे हैं।
भाजपा भले एक बार नहीं, सौ बार राम मंदिर को अपने घोषणापत्र में शामिल कर ले, परंतु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अच्छी तरह जानते हैं कि राम मंदिर बनाने के दो ही मार्ग हैं। पहला न्यायपालिका और दूसरा विधायिका। फिलहाल मोदी ने पहले मार्ग से आशा लगा रखी है। इतना ही नहीं, मोदी सहित पूरी भाजपा को लगता है कि देश का सर्वोच्च न्यायालय यानी सुप्रीम कोर्ट (SC) राम मंदिर के पक्ष में ही कोई निर्णय देगा।
राम मंदिर के पक्ष में खड़ी है मोदी सरकार

यह बात निश्चित है कि यदि केन्द्र में दोबारा भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी और नरेन्द्र मोदी ही प्रधानमंत्री बने, तो लोकसभा चुनाव 2024 से पहले राम मंदिर का निर्माण होकर रहेगा। यह दावा इसलिए किया जा सकता है, क्योंकि मोदी सरकार ही ऐसी पहली सरकार है, जो सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर के पक्ष में खड़ी है। सुप्रीम कोर्ट को सबसे पहले तो इलाहाबाद उच्च न्यायालय (HC) के उस निर्णय को दी गई चुनौती पर विचार करना है, जिसमें विवादास्पद भूमि का एक तिहाई हिस्सा राम मंदिर के लिए सौंपने की बात कही गई थी। इतना ही नहीं इलाहाबाद एचसी ने पुरातत्व विभाग के प्रमाणों के आधार पर इस बात को भी माना था कि जिस जगह रामलला विराजमान हैं, वहाँ पहले मंदिर ही था।
तो मंदिर में ही रामलला के दर्शन करेंगे मोदी

मोदी सरकार ने वर्तमान में राम जन्म भूमि विवाद पर पूरी तरह संविधान और कानून पर निर्भर रहने का रुख अपनाया है। सरकार चाहती है कि सुप्रीम कोर्ट ही राम मंदिर पर कोई फ़ैसला सुनाए, परंतु मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से बीच-बीच में राम मंदिर मुद्दे पर जो निर्देश या संकेत आए, उन पर अपनी प्रतिक्रिया में एक बात बहुत ही स्पष्ट तौर पर कही कि सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला राम मंदिर के पक्ष में ही आएगा और अगर ऐसा नहीं हुआ, तब सरकार राम मंदिर बनाने के लिए जो भी आवश्यक कार्यवाही है, वह करेगी। स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित सभी भाजपा नेता यह बात बार-बार दोहराते रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला यदि राम मंदिर के विरुद्ध आया, तब सरकार राम मंदिर निर्माण के लिए जो भी आवश्यक कार्यवाही है, वह करेगी। इसका सीधा और सादा अर्थ यही निकलता है कि यदि सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला राम मंदिर के विरुद्ध आया और केन्द्र में पूर्ण बहुमत वाली मोदी सरकार ही आई, तो यह निश्चित है कि राम मंदिर निर्माण के लिए संसद में स्वयं सरकार अध्यादेश लेकर आएगी। पूर्ण बहुमत की सरकार के लिए ऐसा अध्यादेश पारित कराना बहुत मुश्किल नहीं होगा और संभव है कि नरेन्द्र मोदी राम मंदिर बनने के बाद ही भगवान रामलला के दर्शन करने अयोध्या जाएँ।