मथुरा के वृंदावन में बांके बिहारी जी का विशाल मंदिर है, जहां देश विदेशों से भक्त सिर्फ उनकी एक झलक पाने के लिए आते हैं। मान्यता है कि इस प्रतिमा में भगवान कृष्ण और माता राधा का मिलाजुला रूप समाया हुआ है। माना जाता है कि मार्गशीर्ष माह की पंचमी तिथि को बांके बिहारी प्रकट हुए थे, इस उपलक्ष्य में हर साल वृंदावन में विशाल उत्सव का आयोजन किया जाता है।
स्वामी हरिदास से प्रसन्न होकर बांके बिहारी प्रकट हुए
मंदिर के सेवायत अनंत गोस्वामी जी ने हमें बताया कि स्वामी हरिदास जी भगवान श्री कृष्ण को अपना आराध्य मानते थे। उन्होंने अपना संगीत कन्हैया को ही समर्पित कर रखा था। वे अक्सर वृंदावन स्थित श्री कृष्ण की रास लीला स्थली निधिवन में बैठकर संगीत से कन्हैया की आराधना करते थे। जब भी स्वामी हरिदास श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन होते तो श्रीकृष्ण उन्हें दर्शन देते थे। एक दिन स्वामी हरिदास के शिष्य ने कहा कि बाकी लोग भी राधे कृष्ण के दर्शन करना चाहते हैं, उन्हें दुलार करना चाहते हैं। उनकी भावनाओं का रखकर स्वामी हरिदास भजन गाने लगे।
जब श्रीकृष्ण और माता राधा ने उन्हें दर्शन दिए तो उन्होंने भक्तों की इच्छा उनसे जाहिर की। तब राधा कृष्ण ने उसी रूप में उनके पास ठहरने की बात कही। इस पर हरिदास ने कहा कि कान्हा मैं तो संत हूं, तुम्हें तो कैसे भी रख लूंगा, लेकिन राधा रानी के लिए रोज नए आभूषण और वस्त्र कहां से लाउंगा। भक्त की बात सुनकर श्री कृष्ण मुस्कुराए और इसके बाद राधा कृष्ण की युगल जोड़ी एकाकार होकर एक विग्रह रूप में प्रकट हुई। कृष्ण राधा के इस रूप को स्वामी हरिदास ने बांके बिहारी नाम दिया। बांके बिहारी, राधा कृष्ण का मिलाजुला रूप है। माना जाता है इस विग्रह रूप के जो भी दर्शन करता उसकी सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं।