1526 में भारत आए मुगलों (Mughal Empire) ने करीब-करीब पूरे भारत पर एकछत्र राज किया। लेकिन भारत के कुछ इलाके ऐसे भी थे, जहां मुगल बार-बार कोशिश करने के बावजूद अपना राज स्थापित नहीं कर सके। ऐसा ही एक राज्य है असम, जिसमें सैंकड़ों सालों तक अहोम वंश (Ahom Kingdom) का शासन रहा। मुगलों ने इस दौरान कई बार कोशिश की, लेकिन लाचित बोरफुकन (Lachit Borphukan) जैसे योद्धा के चलते मुगल, असम पर कभी भी कब्जा नहीं कर सके। तो आइए जानते हैं असम के इस महान योद्धा के बारे में, जिसने शक्तिशाली मुगलों से टक्कर लेने का फैसला किया और ना सिर्फ टक्कर ली बल्कि मुगलों को हराया भी।
अहोम राजवंश(Ahom Kingdom)
Lachit Borphukan के बारे में जानने से पहले हमें अहोम राजवंश के बारे में जानना जरुरी है। बता दें कि अहोम राजवंश ने असम (Assam) पर करीब 600 सालों तक राज किया। इस राजवंश की स्थापना 1228 ईस्वी में म्यांमार के एक राजा ने की थी। हालांकि असम आकर इस राजवंश ने हिंदू धर्म अपना लिया था। मुगलों और अहोम राजवंश के बीच करीब 70 सालों तक रुक-रुककर लड़ाई चलती रही, लेकिन मुगल इस राजवंश को कभी नहीं जीत सके। जैसा कि सभी जानते हैं कि मुगलों की नीति हमेशा विस्तारवाद की रही। इसी नीति का नतीजा था कि उन्होंने लगभग पूरे भारत पर राज किया। मुगलों और अहोम राजवंश की बीच लड़ाई भी इसी विस्तारवादी नीति के कारण हुई। 1218 से शुरु होकर अहोम राजवंश का असम पर राज अंग्रेजों के जमाने तक मतलब 1826 ईस्वी तक चला।
लाचित बोरफुकन (Lachit Borphukan)
हमारे इतिहास में कई ऐसे योद्धा हुए हैं, जिन्होंने अपनी वीरता से मुगलो और अंग्रेजों से खूब टक्कर ली। लेकिन दुख की बात रही कि हमारे इतिहासकारों ने उन्हें भुला दिया और ऐसे योद्धाओं की कहानी देश की आम जनता तक नहीं पहुंच सकी। ऐसे ही योद्धाओं में शुमार किया जाता है लाचित बोरफुकन का। बता दें कि लाचित बोरफुकन असम के अहोम राजवंश के सेनापति थे। यहां साफ कर दें कि बोरफुकन, लाचित का नाम नहीं बल्कि उनकी पदवी थी।
लाचित का जन्म साल 24 नवंबर1622 में अहोम राजवंश के एक बड़े अधिकारी के घर हुआ। बचपन से ही काफी बहादुर और समझदार लाचित जल्द ही अहोम राजवंश की सेना के सेनापति यानि कि बोरफुकन बन गए। लाचित ने सेना का सेनापति रहते हुए अहोम सेना को काफी ताकतवर बनाया, जिसका फायदा उन्हें मुगलों के खिलाफ लड़ाई में मिला।
इतिहासकारों का कहना है कि 1662 में मुगल सेना ने गुवाहटी पर कब्जा कर लिया था। जिसके बाद अगले 5 सालों तक गुवाहटी मुगलों के पास रहा। लेकिन 1667 मे गुवाहटी पर एक बार फिर से अहोम राजाओं का कब्जा हो गया। इस लड़ाई के नायक रहे लाचित बोरफुकन, जिन्होंने बड़ी ही चतुराई और वीरता से मुगलों को गुवाहटी से खदेड़ दिया। इसके बाद Lachit Borphukan के नेतृत्व में ही ऐतिहासिक सरायघाट की लड़ाई लड़ी गई, जिसमें मुगलों को एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी।
सरायघाट की लड़ाई
1667 में अहोम राजाओं से मिली करारी हार के बाद मुगल बुरी तरह से तिलमिला गए। जिसके कुछ समय बाद ही मुगल शासक औरंगजेब ने राजपूत राजा राम सिंह के नेतृत्व में विशाल मुगल सेना को अहोम राजवंश पर जीत के लिए रवाना कर दिया। 1669-70 में मुगल सेना और अहोम राजाओं के बीच कई लड़ाईयां लड़ी गईं, जिनका कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका। इसके बाद 1671 में सरायघाट इलाके में ब्रह्मपुत्र नदी में अहोम सेना और मुगलों के बीच ऐतिहासिक लड़ाई हुई। यह लड़ाई इतिहास की अहम लड़ाईयों में गिनी जाती है, जिसने पानी में लड़ाई की तकनीक को नए आयाम दिए।
सरायघाट की लड़ाई में मुगल सेना बड़े बड़े जहाजों पर सवार होकर असम में घुसने की कोशिश कर रही थी, लेकिन अहोम सेना ने संख्या में कम होते हुए भी तकनीक और चतुराई के दम पर शक्तिशाली मुगल सेना को हरा दिया। कहा जाता है कि सरायघाट की लड़ाई से पहले अहोम सेना के सेनापति लाचित बोरफुकन बीमार हो गए और युद्ध में हिस्सा नहीं ले पाए। जैसे ही युद्ध शुरु हुआ अहोम सेना मुगल सेना से हारने लगी। इसकी सूचना मिलते ही लाचित बीमार होते हुए भी लड़ाई में शामिल हुए और अपनी कमाल की नेतृत्व क्षमता के दम पर सरायघाट की लड़ाई में करीब 4000 मुगल सैनिकों को मार गिराया और उनके कई जहाजों को नष्ट कर दिया। सरायघाट की लड़ाई में करारी हार के बाद मुगल पीछे हट गए और फिर कभी भी असम पर आक्रमण के लिए नहीं लौटे।
सरायघाट की लड़ाई के कुछ समय बाद ही लाचित की बीमारी से मौत हो गई, लेकिन यह वीर योद्धा इतिहास में सदा के लिए अमर हो गया। असम में आज भी लाचित बोरफुकन का नाम बड़े ही सम्मान से लिया जाता है और हर साल लाचित के जन्मदिवस 24 नवंबर पर असम में लाचित दिवस मनाया जाता है।